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“बाबा जी के दृष्टांत “——पंचम

SUBODHA
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एक थे पंडित जी ,मौन साधक ,हर सांस में राम -राम चलता रहता था ,ओंठ भी नहीं हिलाते थे ,ताकि उनका नाम जप रूपी धन कोई जान न ले |
पंडिताइन कहीं सत्यनारायण की कथा सुनने गयीं,तो वहां नाम जप की महिमा सुनी,पंडिताइन को बड़ा अफ़सोस हुआ कि पंडित जी तो कभी भगवान का नाम ही नहीं लेते |
पंडिताइन ने संकल्प लिया कि जब पंडित जी भगवान का नाम उच्चारण करेंगे ,तो अपने घर पर सत्यनारायण की कथा करवाएंगी | एक दिन पंडित जी निद्रा में थे ,तो सोते -सोते ही “राम ” का तेज़ उच्चारण किया | सुबह पंडित जी उठे ,देखा ,आज पंडिताइन बहुत पूजा -पाठ करने की तैयारी में लगी हुयी हैं ,पूरा घर ब्रह्म मुहूर्त में उठकर लीप -पोत डाला |
पंडित जी ने कहा ,आज क्या ख़ास है भाई ? बहुत खुश हो तुम |
तब पंडिताइन ने पूरा किस्सा बताया |
पंडित जी ने सत्यनारायण की कथा -वगैरह करवाई ,पर उस रात बहुत सोच में पड़ गए,और प्रभु से बोले -आज तक मैंने आप को कितना छुपा के रखा ,कितने जतन से मैंने अपनी भक्ति दुनिया से छिपाई ,पर आज तो मेरा हीरा ही खो गया ,अब जी कर क्या करना प्रभु ? और दूसरे दिन शरीर छोड़ दिया |
कहने का भाव यह है ” धर्म जितना गुप्त तरीके से करो उतना अधिक फल दाई “.धर्म के नाम पर दिखावा ,ढोंग आदि बिलकुल भी अच्छा नहीं होता |
नोट – मेरा व्यक्तिगत मानना है ,आज महानगरों में ,बड़े शहरों में जो धर्म के नाम पर हो रहा है ,वह बहुत अजीब है ,सात्विक धर्म हो ,पर शोर -शराबा ,शराब -शबाब धर्म के बीच में न आये ,तो ही अच्छा है |

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