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न काहू से दोस्ती ,न काहू से वैर || कबिरा खड़ा बाजार में मागत सब की खैर ||
मैं दोस्तों के बीच अवश्य रहा ,पर रहा अपने ही ढंग से ,जहाँ मुझे ऐसा लगा ,अब मेरे विचार उनसे नहीं मिल रहे ,तुरंत मैं उनसे अलग हो गया |
९ वी कक्षा में मैं राजकीय इंटर कॉलेज ,उमर्दा ,कन्नौज में पढता था,मेरा एक सहपाठी भी जो हमारे साथ कक्षा एक से पढ़ रहा था ,पड़ोस के गांव का था ,हम एक दिन स्कूल से वापस आ रहे थे,बस से उतरने के बाद वह मुझसे बोला चलो गांव होकर चलते हैं ,उसके गांव होकर जाने में मुझे थोड़ा फेर पड़ता था ,सड़क से सीधी रास्ता भी मेरे गांव को जाती थी | हमने कहा,भाई थका हुआ हूँ ,सीधा निकलकर जल्दी घर पहुंचूंगा और उसी दिन से हम दोनों जुदा हो गए | पुनः आजतक कोई बात ही नहीं हुयी ,पर दोनों एक दुसरे का हित सोचते हैं ,कोई उसके घर का मिलता ,तो हाल चाल लेता हूँ |
यही आदत आज भी है |
हमारे टाउन में तो कुछ वर्ष पूर्व एक सहपाठी ने ही अपने मित्र(१० वी के छात्र ) का अपहरण और फिर ह्त्या करवा दी |
मानवीय मष्तिष्क भी,कुछ करने से पहले नहीं सोचता ,बाद में सोचकर कुछ फायदा नहीं |
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