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“बालिग़-नाबालिग,बलात्कार-हत्या,सेक्स एजुकेशन- लाइफ एजुकेशन”

SUBODHA
SUBODHA
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अनेक गंभीर मुद्दो के बीच में, देश इस जघन्य आपराधिक मुद्दे पर भी चिंतन कर रहा है,-बलात्कार क्यों बढ़ रहे हैं ,२८ दिन की बच्चियों से लेकर-बृद्धाओं पर भी,नाबालिग , बालिग़ ,वृद्ध के द्वारा यह दुष्कृत्य बढ़ता ही जा रहा है | न्यायालय ,संसद की और ताक रहा है और संसद न्यायलय की ओर ,भोली बेबस जनता संसद ओर न्यायालय दोनों की ओर,एवं अपराधी ,निरंकुश होकर यह घिनौना कृत्य कर देता है -आखिर दोष किसका ? क्या फांसी ही समाधान है ? अथवा जननेंद्रिय ही काट देनी चाहिए,बधियाकरण आदि विचार ,लोक तंत्र के चतुर्थ स्तम्भ कहे जाने वाले मीडिआ में चर्चित हैं |
पर सोचने का विषय यह भी है ,यह अपराध बढ़ा कैसा ? शायद शोले फिल्म का डायलॉग है – जब कही कोई बच्चा रोता है ,तो माँ कहती -सो जा बेटे ,गब्बर आ जाएगा अर्थात जब देश में डकैतों का वर्चस्व था ,तब भी बलात्कार नहीं थे ,समाज औरत को माँ,बहन ,बेटी ,बहू के लिहाज़ से देखता था ,पर आज – हम औऱ हमारा समाज औरत के उस रूप के दर्शन नहीं कर रहे औऱ मुझे यह लिखने में भी कोई हैरानी नहीं -औरत भी आज माँ ,बहन ,बेटी जैसी शब्दों को नहीं सुनना चाहती -( चार वर्ष पूर्व मैंने एक अधेड़ उम्र की महिला को -माता जी बोल दिया ,तो वह पलटकर गुस्से में बोली -माता जी क्यों बोला ,मैंने उस दिन विचार किया -यह शब्द -(माँ) -बहुत सोच कर प्रयोग करना चाहिए |
आज समाज सेक्स एजुकेशन पर सोच रहा है , जबकि हमारे धरम ग्रन्थ – शरीर के प्रारम्भ से लेकर अंत औऱ फिर पुनर्जन्म तक भरे पड़े हैं – अर्थात जीव की माँ के गर्भ में शुरूआत कैसे होती है ,वह गर्भ के प्रथम माह से ९ माह तक किस तरह बढ़ता है,उसके क्या विचार होते हैं ,जन्म लेने के पूर्व कितने संकट का समय होता है इत्यादि |
गो स्वामी जी ने लिखा -|| जनमत ,मरत दुसह दुःख होइ || क्या आज के समय की मांग यह नहीं है कि-हम सेक्स एजुकेशन के बजाय,शरीर रचना विज्ञान को आज के समाज को सिखाएं |
मेरे एक मित्र ने मुझे एक सच्ची घटना बताई – किसी बलात्कारी का समाज ने मिलकर जननेंद्रिय काट दिया ,इसके बाद वह वहशी हत्यारा हो गया औऱ वह महिलाओं को पकड़ कर ह्त्या करने लगा |
आज के इस भोगवाद में कही न कही हम ,सत्य से दूर भाग रहे हैं | हमारी आवश्यकताएं बहुत अधिक हैं ,हम अपने परिवार औऱ समाज में रीति -नीति से नहीं , उच्छृङ्खलवाद से चलना चाहते हैं | माता -पिता ,भाई -बहन सब अपने में व्यस्त हैं,किसी को एक -दूसरे को शांति से सुनने या उससे बात करने या उसको सांत्वना देने का समय नहीं |
आज मानव पागल कुत्ते की तरह इधर -उधर भटक रहा है औऱ किसी नारी को देखकर उस पर टूट पड़ता है |
पर जो भी,जब किसी की “अति” होती है,तो उसकी “इति” भी सन्निकट होती है -नारी जागे ,औऱ अपने परिवार को जगाये ,पुरुष जागे औऱ सत्य को खोजे यही सबसे उत्तम कार्य है |
हे ईश्वर ! देश औऱ विश्व को इस पाप से मुक्ति दे |

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