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“सम-विषम नहीं,सहकारिता चाहिए “

SUBODHA
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पूरे विश्व के वातावरण पर बढ़ते हुए प्रूदूषण के खतरे के आगे, देश की राजधानी में जो इन दिनों नया प्रयोग चल रहा है ,उससे लाभ कम और नुक्सान अधिक है,हाँ ,मुख्यमंत्री का बच्चों एक नाम पत्र पूरी तरह से सच्चा और अच्छा था ,पर इस सम -विषम से प्रदूषण पर नियंत्रण होगा ,यह सोचना ,महज़ एक मानसिक दिवालियापन है ,इस देश में कइयों के पास दो गाड़ी हैं -एक सम ,एक विषम और बहुतों के पास अनेक गाड़ी हैं ,सम विषम तो क्या ,अंत में ० से ९ अंक तक कोई भी गाड़ी लेकर चलेंगे |
पर इन सबके के बीच ,जो रास्ता न्यायाधीशों द्वारा अपनाया गया ,वह अनुकरणीय एवं सर्वश्रेष्ठ है ,ऐसा भी कहा जा सकता है -यही करने के लिए तो सम -विषम लागू किया गया ,पर बहुत से लोग कानून का दुरपयोग करते हुए भी पकडे गए ,कुछ ने गाड़ी की नंबर प्लेट चेंज कर ली |
आज समय की मांग है -सहकारिता ,सबकी भागीदारी ,इसी में सबकी समझदारी है |
अतः समाज के लोग ,अपने आसपास अपने जैसे लोगों का समूह बनाये ,जिस गाड़ी में ८-१० अथवा ४-६ लोगों की बैठने की जगह हो ,उसमे अकेले बैठकर सड़कों पर मत घूमे |
मेरु कैब वालों का एक सॉफ्टवेयर है ,जिससे घर बैठा व्यक्ति भी गाड़ी की लोकेशन जान सकता है ,उसे वाहनो में लगाये | देश की नारी शक्ति भी इस कार्य को करने के लिए एक जुट हो सकती है | अपने सहकर्मियों को जो आप के आसपास रहते हों -उनके साथ एक ही गाड़ी में ऑफिस जाएँ ,यदि ऑफिस का टाइम १-२ घंटे कम ज्यादा है ,तो उसे harmonize करें |
कुछ कम्पनीज को भी अपनी बस सेवा शुरू करनी चाहिए -जैसे की स्कूल बस,उसे भी वह hire कर सकते हैं ,क्यूंकि स्कूल और ऑफिस की टाइमिंग में कुछ अंतराल होता है | अर्थात यदि एक ऑफिस में १०० व्यक्ति, १०० (अपनी) गाड़ी से आते हैं ,तो बेहतर है -वह सब एक अथवा २ बस से आये -जाएँ |
अंत में सब प्रभु इच्छा , नियति हमेशा परिवर्तन के लिए आतुर है ,यदि हम नहीं बदले ,तो नियति हमें बदल देगी |

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