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पिशाच प्रेमी या पागल

SUBODHA
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स्नेही स्वजन,
मैं और मेरा परिवार,गायत्री परिवार से जुड़ा हुआ है ,अभी विगत एक माह से मैं ऑनलाइन भी गायत्री परिवार के गुरुकुलम से जुड़ गया,वहां से एक आलेख नित्य मुझे आता है ,मैंने निम्नलिखित आलेख को आप सबके समक्ष रखने की इच्छा की |
आशा है ,सब इसे पसंद करेंगे |——————————————–
(पिशाच प्रेमी या पागल)
देखते हैं कि आजकल गली कूचों में प्रेम की आँधी सी आई हुई है। मुहब्बत के तूफान उड़ रहे हैं। सिनेमाबाज, मनचले, शौकीन फिल्म अभिनेत्रियों से प्रेम करते हैं, उनकी तस्वीरों को आँखों में छिपाये फिरते हैं। सूरत मन में बसी हुई है, उनके हाव-भाव और भाव-भंगी का ऐसा स्मरण करते रहते हैं मानो ये ही इनकी उपास्य देवता हैं। “प्रेम का घर हो प्रेम की छत हो” के गीत उनकी जबान पर गुनगुनाते रहते हैं, उन्हीं की प्रतिध्वनि उनके कानों में गूँजती रहती है।

देखते हैं कि गलियों में कमर लचकाकर चलने वाले छैल चिकनियाँ पराई बहिन-बेटियों पर कुदृष्टि डालते हैं। उन्हें बहकाकर पाप पंक में घसीटने का प्रयत्न करते हैं, मौका लगे तो उनका धन, धर्म ले भागते हैं। कलेजा थामे फिरते हैं, कोई नयन बाण से बिधा हुआ बनता है, किसी को इश्क का ज्वर है, किसी को मुहब्बत मर्ज। बुलबुल के तराने, सैयाद कफस, शमा, परवाना, कातिल, शमशीर दिल, छुरी और न जाने क्या-क्या उन्हें याद आता है। वेश्याओं के उपासक, दुराचारिणी स्त्रियों के गुलाम, यह रंगीले मनचले इधर से उधर मटर-गश्ती करते हैं और अपने को प्रेमी बताते हैं।

देखते हैं कि घासलेटी कथाकार, आशिक माशूकी के अफसाने कहने वाले, लैला मजनू के नवीन संस्करण तैयार करते हैं। भोगेच्छा को अनियंत्रित रूप से भड़काने के लिए प्रेम को बन्धन रहित बताते हैं। “काबू में जिसका दिल न हो-वह गरीब क्या करे?” का नारा इसलिए लगाया जाता है कि इनकी शोहदाई को छूट मिल जाय, दुनिया इन्हें निर्दोष समझे। चार मनचले मिले कि गन्दी-गन्दी चर्चा चली, खूबसूरत औरतों की चर्चा, अपने कुकर्मों का बढ़ा-चढ़ा वर्णन, इन्द्रिय सुख की अनर्गल कल्पनाएं करने वाले अपने को प्रेमी मानते हैं।

देखते हैं कि अबोध किशोर बालकों को लालच या बहकावे में डालकर उन्हें अपनी लिप्सा का साधन बनाने वाले मुहब्बत का दम भरते हैं। उन लड़कों को अपने ही जैसा पतित जीवन बिताने की शिक्षा देने वाले एवं उनका शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य नष्ट कर देने वाले यह कुकर्मी अपने कार्य में प्रेम की गन्ध ढूँढ़ते फिरते हैं!

देखते हैं कि रूप रंग की चटक-मटक पर लोभित होकर स्त्री-पुरुष इन्द्रिय-प्रेरणा से व्याकुल होते हैं, और एक दूसरे को पाने के लिए बेचैन रहते हैं, पत्र व्यवहार चलता है, गुप्त संदेश दौड़ते हैं, और न जाने क्या क्या होता है, प्रेम रस चखने में उनकी बड़ी व्याकुलता होती है और सोचते हैं कि हमारे यह कार्य प्रेम के परिणाम है।

क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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