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“सब भ्रष्ट हैं?”

SUBODHA
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एक कहावत है -आज के समय में वही ईमानदार है ,जिसे चोरी करने का मौक़ा नहीं मिला | पर बहुत कम ही ऐसे लोग होंगे -जो सामने धन पड़ा रहे और उसे यह अपना नहीं है ,ऐसा सोचकर न उठाये | पर आज की इस दुनिया में जब १०० के बीच में १ ईमानदार है ,तो क्या यह कहना सही नहीं है -सब भ्रष्ट ही हैं | कही ऐसा न हो ,कुछ समय के बाद ईमानदार होना -मानसिक वेवकूफी साबित हो जाये और ईमानदारी की सजा हो -जेल अथवा आत्महत्या (जैसा -कविवर संतोषानंद के बेटे और बहू के साथ हुआ ) | चाहे सरकारी हो या गैर सरकारी ,बाबू हो या नेता , व्यापारी हो या कर्मचारी सब पहले यह सोचते हैं -२ पैसे ऊपर से आने का या टेबल के नीचे से आने का कोई मार्ग है या नहीं | ऐसे समाज के बीच ,जो सत्यवादी हरिश्चंद्र है ,वह पापी हरिश्चंद्र ( हमारे एक आदरणीय ब्लॉगर का ब्लॉग नाम भी ) स्वतः घोषित हो जाएगा | अथवा यदि उसने अपनी जवान खोली ,उन बेईमानो के खिलाफ तो विनाश कर दिया जाएगा उसका उन मेजोरिटी के बुद्धिजीवियों के द्वारा |
पर जो भी हो,
दुनिया में आये हैं ,तो जीना ही पडेगा |
जीवन गर जहर है ,तो पीना ही पडेगा |
“पय पीकर सब मरते आये ,लो अमर हुआ मैं विष पीकर” -अटल शब्द |

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