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“वेष,कुवेष,सुवेष”

SUBODHA
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शीर्षक के तीनो शब्द बहुत विचित्र है ,यह जैसे दिखते हैं अथवा जैसा इनका शाब्दिक अर्थ है ,वैसे बिलकुल नहीं |
हो सकता है कोई सुवेष में हो ,पर अंदर से बहुत कुमार्गगामी हो ,हो सकता है कोई कुवेष में हो ,पर कभी किसी का न बुरा किया हो ,न सोचा हो |
हो सकता है कोई जुवान का बहुत मीठा हो ,पर अंदर से पूरा विषैला ,हो सकता है कोई बहुत क्रोधी हो ,पर अंदर से बहुत शांत , उदार और सरल | विधाता की रचना बहुत अनोखी है |
मेरे बाबा जी ने मुझसे एक बार कहा था,” इंसान बात करना शुरू करे तो उसको ध्यान से सुनो ,उसके हाव-भाव को देखो ,वह अपनी बात से ही अपनी ७ पुश्तों का परिचय दे देता है ,उससे पूछना नहीं पड़ता ,तुम कौन हो ,तुम्हारी जाति क्या है ,कहाँ रहते हो आदि ?
यह मेरा अपना अनुभव है ,घर से बाहर निकलो,तो किसी को सही परिचय मत दो ,बोलो कम से कम ,सुनो अधिक |
एक बार मैं कानपूर सेंट्रल स्टेशन पर रात्रि के २ बजे,मुंबई के लिए ट्रैन की प्रतीक्षा में अकेला एक बेंच पर बैठा,कुछ देर बाद एक हमउम्र लोकल युवक मेरे पास बैठकर बोला ,मुंबई जा रहे हो ?,मैंने कहा -नहीं ,उरई.चलना है क्या ? वह वहां से तुरंत उठकर चला गया | क्रिमिनल माइंड बहुत शातिर होते हैं ,सीधे आदमी को बहुत जल्दी पहचान लेते हैं और उन पर अटैक कर देते हैं | अतः अलर्ट रहो, वेष भले ही साधारण हो ,पर दिमाग हर पल चौकन्ना |
रामचरितमानस में तुलसी बाबा ने -वेष ,सुवेष और कुवेष पर बहुत लिखा |
तुलसी देखि सुवेष ,भूलहिं मूढ़ .न चतुर नर |
सुंदरि केकियि पेखि ,बचन सुधा सम असन अहि || अर्थात – अच्छी वेष भूषा और अच्छी आवाज(मीठी वाणी ) सुनकर भ्रमित मत हो ,जो भ्रमित होते हैं ,वह मूढ़ हैं ,जो सजग रहते हैं ,वह चतुर हैं ,मोर को देखो -कितनी सुन्दर और कितना अच्छा बोलती ,पर वह सांप जैसे जहरीले जीव को खाती है |
कोई अच्छा वेष बनाकर किसी को ठग सकता है ,पर जब उसका असली रूप सामने आता है ,तब समाज मिलकर उसे दण्डित करता है |
उघरें अंत न होहि निबाहू | कालनेमि जिमि रावन राहू ||

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