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SUBODHA
SUBODHA
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अक्सर मेरे दिमाग में एक नहीं अनेक विचार उठते हैं,
कुछ उठकर लुप्त हो जाते है ,कुछ बार -बार ,वार करते हैं ,
मानव मष्तिष्क शायद सबसे जिज्ञासु है ,
कुछ सोच और खोज का वह सतत पिपासु है,
अक्सर काले जादू की चर्चा होती है ,
मैं सफ़ेद जादू का अन्वेषक हूँ ,
अमावस की गहन रात नहीं ,पूनम की चांदनी ही गुल खिलाती है,
कब तक जिएंगे अँधेरे में यार ,सूरज की एक किरण ही रोशनी लाती है,
सूर्य तुम्हारे नमस्कार का मोहताज़ नहीं ,
यह तो हमारी चाहत है ,उसे देखने की
और आँखों के चौधिआते ही,पलक झपकाने की,
क्योंकि उसका तेज़ हम झेल नहीं पाते,
उसके ओज के सामने हम टिक नहीं पाते,
यह ज्योतिष का ज्ञान ,कर्मकांड ,परिक्रमा -प्रणाम ,सब अल्फाबेट है,
सब में तू और तुझमे सब, यही सबका शोध है,
धर्म तू नहीं ,तुझे देखने का साधन है,
कर्मकांड तू नहीं ,तुझ तक पहुँचने का एक सदाचार है.
यह रात-दिन ,सोना -जगना,कमाना -खर्च करना,
निर्माण -पुनर्निर्माण का गोरखधंधा हमेशा चलता रहेगा |
हमारे दादे-परदादे भी यही करते रहे और नाती -पनती भी यदि यही करेंगे,
तो सभ्यता का विकास क्या हुआ?
वह बैलगाड़ी पर चले ,तुम प्लेन पर चले ,क्या यही विकास है?
पर बैलगाड़ी से मरने की गुंजाइस कम थी,प्लेन तो पूरा समुद्र में समा जाता है,
सारे संसार में हाहाकार मचा जाता है,
मरने वालों की आत्मा तड़पती होगी,
मरने से पहले ,बचने की चाहत बढ़ती होगी,
मरने के बाद का संसार कौन सा है?
जन्म से पहले का अस्तित्त्व क्या है ?
क्या सूक्षम शरीर ,पुनर्जन्म कुछ है ?
क्या सूक्षम शरीर भी मर सकता है ?
क्या पुनर्जन्म से भी मुक्ति संभव है ?
मुक्त होकर हम क्या करेंगे ?
जन्म लेकर हम क्या कर रहे हैं ?
ऐसे अनेक प्रश्न जो अनुत्तरित हैं,
जिनके उत्तर नासा या इसरो के वैज्ञानिक नहीं,
हमें स्वयं खोजने होंगे|

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