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एक देसी कहावत है,अंधे पीसे ,कुत्ते खायेँ | अर्थ,भावार्थ सब स्पष्ट ही है ,पर फिर भी विवेचना के तौर पर कुछ लिखना आवश्यक है | यदि अँधा इंसान, आटा पीसेगा ,तो पता ही नहीं चलेगा ,कितना पिसा और कुत्ते मौका पाकर सब खा जायेंगे | पर मजे की बात यह है,सभ्यता ,खाने और सोने से ही नहीं चलती | माननीय पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी के शब्द,” पय पीकर सब मरते आये ,लो अमर हुआ मैं विष पीकर “. बात यहाँ पर आकर रुकती है,कि किसकी कैसी सभ्यता है ,किसकी कैसी सोच है | यदि मैं कहूँ ,हर एक इंसान का अपना सिद्धांत है ,अपनी सभ्यता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं | सदाचारी इंसान सत्तासीन होकर विनम्र बन जाता है,चाहे वह जन्म से रंक ही क्यों न हो | दुष्ट प्रवृत्ति का इंसान,हर एक उपलब्धि पर दुनिया के सामने नंगनाच करने लगता है ,जैसे वह सब कुछ निगल ही जाएगा |पर इन सबसे ऊपर है काल,वह समय -समय पर सभ्यताओं को परिष्कृत करने का कार्य करता है | वह बतलाता है ,इस जगत में तुम कुछ भी नहीं हो ,तुम्हारे जैसे कितने आये और चले गए ,पर एक इंच जमीन भी इधर -उधर नहीं हुयी ,क्यूंकि इस धरा का स्वामित्व किसी और के पास है | इसलिए प्यारे जयादा भड़भड़ाओ मत,जियो और जीने दो | अपने को सत्य से कभी दूर मत होने दो ,यदि अलौकिक सत्य के निकट नहीं पहुँच पा रहे ,तो न सही ,पर लौकिक जगत में ,दैनिक व्यवहार में भी सत्य का साथ दो |
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