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“आओ फिर से कलम उठायें”

SUBODHA
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आओ फिर से कलम उठायें |
चलो तुम्हे कुछ नया बताएं ||
गृह कारज नाना जंजाला,
जीवन जैसे विष की हाला ||
फिर भी कुछ ऐसा लिख जाएँ |
जिससे रोते जन मुसुकाएँ |
आओ फिर से कलम उठायें ||
सारे अवगुण व्यापम जैसे |
सारे नेता कलियुग जैसे |
चलो परीक्षित गंगा तट बैठे,
परमहंस को आज बुलाएँ,
आओ फिर से कलम उठायें ||
पैसा -पैसा सब चिल्लाएं ,
पैसे का ही रौब दिखाएँ ,
पैसे की ही दादागीरी ,
पैसे खातिर रंच मचाएं ,
आओ ग्रीस से कुछ तो सीखें,
कौटिल्य अर्थशाश्त्र अपनाएं ||
आओ फिर से कलम उठायें |
हिस्से खातिर काटे भैया,
सोने से भी न जगने दे भैया,
ऐसी जागीर का क्या करना है,
आओ सब कुछ छोड़ दे भैया |
जीवन है कुछ पाने खातिर,
मत हो जा तू इतना शातिर,
इस तन में है ऐसा हीरा,
जिसको खोज सकी थी मीरा,
आओ योग भक्ति में डूबें,जन्म -मृत्यु का बंधन काटें |
स्वास -स्वास में राम ही निकले ,हर पल हम खुशियां ही बाटें ||
आओ फिर से कलम उठायें |
अपनी बीती तुम्हे सुनाएँ ||

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