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हर एक जीव के अंदर दो भाव है ,एक उग्र ,दूसरा शांत | कौन किस भाव में जीना चाहता है ,यह पूर्णतः उसकी सोच पर निर्भर है | महात्मा गांधी जी को भी कभी क्रोध आता होगा और आदरणीय चंद्रशेखर आज़ाद भी बहुत शांतिप्रिय होंगे ,ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है | समझना यह है ,आप किसी समस्या का निदान कैसे करते हैं -क्रोध से अथवा शांति से |
मैंने अपने जीवन में ऐसे ही दो व्यक्तियों का बहुत सूक्ष्मता से निरीक्षण किया |
एक ने हमेशा ऐसा माना,जब मैं दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर ,रसोईघर में जाऊँ,तो भोजन की थाली देखकर ही मेरी आत्मा संतुष्ट हो जानी चाहिए ,यदि कुछ कमी हो गयी या उनकी इच्छा के विपरीत हुआ ,तो थाली ही फेंक देते थे ,तो दूसरे ने कभी भोजन में नमक कम या बिलकुल भी नहीं हुआ ,तो कुछ कहा नहीं |
एक ने हमेशा ऐसा माना ,मैं पुरुषार्थ प्रबल हूँ ,मेरा निर्णय अंतिम निर्णय है ,यदि मेरी संतान मेरी आज्ञापालक नहीं बनना चाहती ,तो मेरी आँखों के सामने न आये और यदि सामने आ गयी,तो लाठी लेकर घर से बाहर भगा दूंगा,तो दूसरे ने जो भी कुछ कहा ,जिससे भी कहा,समझाने -बुझाने के तरीके से कहा |
एक ने अपने पुरुषार्थ से अपना उत्थान और क्षेत्रीय गरीब जनता का सहयोग तो किया ,पर अपने से हार गया,अंत में उन्हें यह लगने लगा ,मेरा क्रोध ,मेरे लिए घातक है,हमारी संतान, हमारी बात मान सकती है ,पर जो दूसरे की बेटी हमारे घर में आये ,वह विवश नहीं है हमारी बात मानने को |
दूसरे हमेशा अपने क्रोध पर काबू करते रहे,जिससे अनबन हो गयी ,उससे कुछ दूरियां बना ली,संकट के समय को अपना प्रारब्ध समझकर हरी स्मरण में लगे रहे और जैसे -जैसे उम्र बढ़ रही ,अधिक शांत हो रहे |
इसलिए क्रोध और शांति सबके अंदर है,थोड़ा दिमाग से काम लेकर आगे बढे ,इसी में हम सबकी भलाई है |
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