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मुझे अक्सर याद आता रहता है ,बाबा जी का वह वक्तव्य जिसमे उन्होंने कहा था-,” जवान लड़के और कुआंरी बिटिया” के बहुत सपने होते हैं,इसे समझे, कि नहीं | मैंने कहा- थोड़ा समझा, पूरा नहीं | फिर उन्होंने उदाहरण देकर समझाया,” इंसान अपनी किशोर उम्र से लेकर जवानी तक बहुत नए सपने बुनता ,यह करूंगा ,फिर ऐसा होगा ,इतने पैसे आएंगे ,फिर यह दूसरा काम चालू करूंगा ,फिर ऐसा होगा ,तब बैसा होगा ,इसी उधेड़बुन में जवानी बीत जाती ,शादी हुयी ,२-४ बच्चे हुए, घर -गृहस्थी में फंस जाता और पता ही नहीं चलता कब बुढ़ापा आ जाता |
ऐसे ही कुआंरी लड़की ,बहुत सपने देखती,मुझे ऐसा लड़का मिलेगा ,कोई राजकुमार मिलेगा, इतने गहने होंगे,बड़ा बँगला होगा,जैसे ही ,शादी हुयी धीरे -धीरे जीवन की हकीकत से रूबरू होने लगती |
यही हाल इस समय देश का है,अब नेताओं का क्या है ,उनका काम ही बयानबाजी करना ,उनके लिए राजनीती, चौपड़ का खेल है ,समय के हिसाब से पैतरे बदलते रहो ,पर जनता को आत्मउत्थान के लिए एक अभियान की आवश्यकता है ,एक महाअभियान जिससे सफाई से लेकर मोक्ष तक का कार्यक्रम शामिल हो ,आत्मविकास से लेकर सामाजिक विकास तक की रूपरेखा हो,साइकिल चलाने से लेकर हवाईजहाज के बारे में सीखने का ज्ञान हो,चीटीं से लेकर हाथी पर्यन्त समस्त जीवधारियों के संरक्षण का प्रयास हो;पैसा ,ताकत और ज्ञान को समाज और प्रकृति के उत्थान के लिए उपयोग में लाया जाये,तो ही युवा भारत विश्वगुरु बन सकता है ,अन्यथा जवानी बीतते देर नहीं लगती |
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