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“अब घर वापस आना चाहता हूँ”

SUBODHA
SUBODHA
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देखकर सारी दिशाएं,
महसूसकर सारी फ़िज़ाएं ,
घूमफिरकर शहर सारे,
चलफिरकर थके हारे,
पुनः मुड़ना चाहता हूँ ,
अब घर वापस आना चाहता हूँ ||
दुनिया की चकाचौंध देखी ,देखी आतिशबाजियां
मद भरे यौवन की देखी ,अनेकों कारगुजारियां
दुबले -पतलो पर भी मादकता का रंग देखा
इस रंगभरी महफ़िल में मैंने इंसान को बेरंग देखा
छोड़कर अब रंग सारे ,त्यागकर अब ढंग सारे
हे जन्मभूमि | तेरे आँचल में सोना चाहता हूँ
अब घर वापस आना चाहता हूँ ||
बड़े -बड़े मुनीम देखे ,कई नामी हकीम देखे
धर्म की चौखट पर सच के कत्ले -आम देखे
वाचालता का प्रवचन औ ईमान का बाज़ार देखा
पैसों से मैंने बिकता हुआ भगवान भी देखा
भूलकर यह दृश्य सारे,सोच कुछ अदृश्य प्यारे
उस मिट्टी की सोंधी खुशबू ,फिर से पाना चाहता हूँ
मैं घर वापस आना चाहता हूँ ||
पढ़ लिखकर कानून सारे,दुनिया के सविंधान सारे
भाषाएँ भी बहुत सीखीं, बोलियाँ भी बहुत जानी
कानून के बिचौलियों से , रिश्तों के दलालों से
नित नयी परिभाषाएं जानी
वक्त के करवट बदलते,उनका भी बुरा हश्र देखा
कल तक जो बड़बड़ाते थे ,उनको भी अब मौन देखा
छोड़कर यह ज्ञान सारा,भूलकर विज्ञान सारा
हे मातृभूमि मेरी | मैं तुझको पाना चाहता हूँ
अब घर वापस आना चाहता हूँ ||

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