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“अराजक ही नहीं,आज्ञाकारी भी जातें हैं जंगल”

SUBODHA
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धरती पर जंगल घट रहे हैं,यह चिंता का विषय है | ७२ % वायु प्रदूषण वाहनो के द्वारा , देश के १२ राज्यों के ९६ जनपदों में भूगर्भ के जल में ९२ % आर्षेनिक ,देश की बिस्कुट फैक्ट्री में हड्डियों का जमावड़ा मिलना आदि अनेक दुखद समाचार मानव को जंगल जाने की प्रेरणा देंगे और यदि मानव विनाशोन्मुख न होकर ,विकासोन्मुख होना चाहता है ,तो अवश्य ही हमें जंगलों का विकास करना चाहिए ,हमें पेड़ -पौधे लगाकर अपने आसपास एक जंगल तैयार करना चाहिए |
इस देश की राम कहानी से सभी परिचित हैं ,एक उत्तराधिकारी ने सत्ता को त्याग दिया ,ताकि महल में जंगल जैसी आग न लगने पाये और जंगल की ओर सहर्ष प्रस्थान कर दिया | यह मात्र एक आज्ञापालन ही नहीं ,वरन एक बहुत बड़ी सीख थी कि यदि अपने घर में कलह होने वाली हो तो कुछ समय के लिए इधर -उधर हो जाओ |
समय बदलेगा ,सभी के विचार बदलेंगे ,जिन्हे मैं शत्रुवत लग रहा हूँ ,वह भी मुझे अपना मित्र मानने लगेंगे |
पर आज जब हर इंसान सत्ता पाने की घुड़दौड़ में शामिल है,उसे राजनीति के सिद्धांतों से कोई प्रयोजन नहीं वरन अपने आप को महान सिद्ध करने में महारत हासिल है,तब नेता के वेश में भी सब अराजक जैसे ही नज़र आते हैं |

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