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सवैया (पद )
जानसिरोमनि (ज्ञानसिरोमणि ) हौ हनुमान सदा जन के मन बास तिहारो |
ढारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो ||
साहेब सेवक नाते ते हातो कियो सो तहाँ तुलसीको न चारो |
दोष सुनाये तें आगेहुँको होशियार ह्वै हों मन तौ हिय हारो ||१६ ||
तेरे थपै उथपै न महेस ,थपै थिरको कपि जे घर घाले |
तेरे निवाजे गरीबनिवाज बिराजत बैरिनके उर साले ||
संकट सोच सबै तुलसी लिए नाम फटै मकरीके -से जाले|
बूढ़ भये ,बलि ,मेरिहि बार ,कि हारि परै बहुतै नत पाले ||१७ ||
सिंधु तरे,बड़े बीर दले खल,जारे हैं लंकसे बंक मवा से |
तैं रन-केहरि केहरिके बिदले अरि-कुंजर छैल छवा से ||
तोसों समत्थ सुसाहेब सेइ सहै तुलसी दुःख दोष दवासे |
बानर बाज बढे खल -खेचर ,लीजत क्यों न लपेटि लवा -से||१८ ||
अच्छ -विमर्दन कानन -भानि दसानन आनन भा न निहारो |
बारिदनाद अकम्पन कुंभकरन -से कुंजर केहरि-बारो||
राम-प्रताप-हुताशन ,कच्छ ,बिपच्छ ,समीर समीरदुलारो |
पापतें ,सापतें ,ताप तिहूँतें सदा तुलसी कहँ सो रखवारो || १९ ||
घनाक्षरी (पद )
जानत जहान हनुमानको निवाज्यौ जन,
मनअनुमानि ,बलि ,बोल न बिसारिये |
सेवा -जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी ,
साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिये||
अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति,
मोदक मरै जो ,ताहि माहुर न मारिये |
साहसी समीरके दुलारे रघुबीरजूके ,
बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये ||२०||
बालक बिलोकि ,बलि, बारेतें आपनो कियो ,
दीनबंधु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये |
रावरो भरोसो तुलसीके ,रावरोई बल,
आस रावरीयै ,दास रावरो बिचारिये ||
बड़ो बिकराल कलि ,काको न बिहाल कियो,
माथे पगु बलीको ,निहारि सो निवारिये|
केसरीकिसोर ,रनरोर ,बरजोर बीर ,
बाहुँपीर राहुमातु ज्यों पछारि मारिये ||२१ ||
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