Menu
blogid : 18093 postid : 818950

“हनुमानबाहुक”………………………..क्रमशः

SUBODHA
SUBODHA
  • 240 Posts
  • 617 Comments

|| जय बाबा बजरंगबली ||
झूलना(पद का प्रकार )
पंचमुख -छमुख -भृगुमुख्य भट -असुर-सुर ,
सर्व -सरि-समर समरत्थ सूरो |
बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली ,
बेद बंदी बदत पैजपूरो ||
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह,जासु बल ,
बिपुल -जल -भरित जग -जलधि झूरो |
दुवन-दल -दमनको कौन तुलसीस है
पवन को पूत रजपूत रूरो ||३||
घनाक्षरी (पद का प्रकार )
भानुसों पढ़न हनुमान गए भानु मन –
अनुमानि सिसुकेलि कियो फेरफार सो |
पाछिले पगनि गम गगन मगन -मन ,
क्रमको न भ्रम ,कपि बालक -बिहार सो ||
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि
लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो |
बल कैधों बीररस ,धीरज कै ,साहस कै ,
तुलसी सरीर धरे सबनि को सार सो ||४||

भारतमें पारथके रथकेतु कपिराज ,
गाज्यो सुनि कुरुराज दल हलबल भो |
कह्यो द्रोन भीषम समीरसुत महाबीर ,
बीर -रस-बारि-निधि जाको बल जल भो |
बानर सुभाय बालकेलि भूमि भानु लागि ,
फलँग फलाँगहूँते घाटि नभतल भो |
नाइ-नाइ माथ जोरि -जोरि हाथ जोधा जोहैं ,
हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ||५||

गोपद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक,
निपट निसंक परपुर गलबल भो|
द्रोन -सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर ,
कंदुक -ज्यों कपिखेल बेल कैसो फल भो ||
संकटसमाज असमंजस भो राम राज
काज जुग-पूगनि को करतल पल भो |
साहसी समत्थ तुलसीको नाह जाकी बाँह ,
लोकपाल पालन को फिर थिर थल भो ||६||

कमठ की पीठि जाके गोडनिकी गाड़ै मानो
नापके भाजन भरि जलनिधि -जल भो |
जातुधान-दावन परावनको दुर्ग भयो,
महामीनबास तिमि तोमनि को थल भो ||
कुंभकरन -रावन-पयोदनाद-ईंधन को
तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो |
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान –
सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो ||७||

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh