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“हनुमानबाहुक”

SUBODHA
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|| श्रीहरिः ||
भारतीय चिंतन में हनुमानचालीसा ही सबसे अधिक प्रचलित है | पर कुछ वर्ष पूर्व मुंबई की गीता प्रेस की दुकान में मेरी नज़र हनुमानबाहुक नमक पुस्तक पर पडी | मुझे उसकी प्रस्तावना और पद्य रुचिकर लगे | मैं चाहता हूँ जो हनुमान जी के भक्त इस रचना से अनभिज्ञ हैं ,उन तक इसे पहुँचाने की एक कोशिश की जाये| अतः मैं इस ४४ पद की आध्यात्मिक कृति को,थोड़ा -बहुत प्रतिदिन जागरण मंच के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास कर रहा हूँ |

संवत १६६४ में गोस्वामी तुलसीदास जी की बाहुओं में वात-व्याधि की पीड़ा और पूरे शरीर में फोड़े -फुंसी हो गए | अनेक लौकिक उपाय करने पर जब पीड़ा का नाश न हो सका,तो तुलसी ने हनुमंत वन्दना प्रारम्भ की और जिससे उनकी शारीरिक पीड़ा की निवृत्ति हो गयी | यह वही पद्य हैं –
छप्पय ( एक प्रकार का पद ,जैसे -दोहा ,चौपाई )
सिंधु -तरन ,सिय -सोच-हरन,रबि-बालबरन -तनु |
भुज बिसाल ,मूरति कराल ,कालहु को काल जनु ||
गहन -दहन -निरदहन-लंक निःसंक , बंक -भुव |
जातुधान -बलवान -मान -मद -दवन पवनसुव ||
कह तुलसिदास सेवत सुलभ ,सेवक हित संतत निकट |
गुनगनत ,नमत,सुमिरत ,जपत ,समन सकल -संकट -विकट ||१||
स्वर्न-सैल -संकास कोटि-रबि -तरुन -तेज -घन |
उर बिसाल , भुजदंड चंड नख बज्र बज्रतन ||
पिंग नयन ,भृकुटी कराल रसना दसनानन |
कपिस केस,करकस लँगूर,खल-दल बल भानन ||
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट |
संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट ||२||

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