Menu
blogid : 18093 postid : 816667

“परिवर्तन संसार का नियम है”

SUBODHA
SUBODHA
  • 240 Posts
  • 617 Comments

यह नियति सबके साथ समान व्यवहार करती है,सबको साथ लेकर चलती है | प्रकृति सारे जीवों से एक समान ही प्यार करती होगी ,ऐसा मेरा मानना है | एक चीटी की मौत से भी प्रकृति कष्ट अनुभव करती होगी,एक कुत्ते के नवजात पिल्ले की मौत से भी उसकी माँ की आँखों में कई दिन तक आसूं आते रहते हैं |
अतः प्रकृति सबके प्रति समान हैऔर ईश्वर भी सबके प्रति एक ही जैसा है ,गीता के अनुसार -न कोई उसे प्रिय और न ही अप्रिय, पर जो जिस भाव से उसे भजता है,वह ईश्वर भी उस जीव की रक्षा करता है | पशु -पक्षियों ने भी उस परम सत्ता का अनुभव किया | हाथी ,कबूतर ,बन्दर ,गरुड़ ,कौआ ,गिद्ध आदि के लिए भी ईश्वर सुगम हो गया,ऐसा जानकर भी जो मनुष्य देह पाकर भी उस ईश्वर के प्रति समर्पित नहीं हैं,तो शायद इस देह को पाना भी एक बेईमानी का खेल है |
वैसे तो काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह आदि रोग सृष्टि में व्याप्त ही हैं,पशु -पक्षी भी इनके अधीन होकर भटक जाते हैं | दुर्गा सप्तशती के अनुसार,”ज्ञानिनामपिचेतानसि देवी भगवती हि सा ,बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति” ||-ज्ञानिओं के भी चित्त को बलपूर्वक खीचकर वह महामाया मोह में डाल देती हैं| ,गीता के अनुसार,पार्थ वक्तव्य है ,” चंचलं हि मनः कृष्णः प्रमाथिबलवद्दृढम् ,तस्याहं निग्रहम् मन्ये वायुर इव सुदुस्करम”| ईश्वर का, अर्जुन की स्वीकारोक्ति के साथ विनम्र सन्देश है,” निःसंशयम् महाबाहो मनः दुर्निग्रहं चलम,अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च ग्रिह्यते”|| ईश्वर भी मानता है कि मन चंचल है,पर अभ्यास और वैराग्य से उसे नियंत्रित करने का सन्देश भी देता है |
पर मानव अनियंत्रित होकर पिशाचवत आचरण करने लगा,उसने अपने आगे किसी की नहीं सुनी | मेरा व्यक्तिगत मानना है ,ईश्वर हर जीव को राजा बनाकर पृथिवी पर भेजता है ,मैंने पशुओं के मस्तक पर भी तिलक का चिन्ह देखा है ,वह भी राजा के समान पृथिवी पर विचरण करते हुए स्वेच्छा से जी रहे हैं | पर जब एक जीव दूसरे जीव को आक्रांत करने पर आमादा हो जाता है ,तब प्रारम्भ होता है ,पतन का मार्ग और तब श्रष्टि भी कुछ परिवर्तन करने के लिए आतुर होती है ,तब एक खरगोश भी जंगल के राजा शेर को कुएं के पास ले जाकर उसकी प्रतिध्वनि और प्रतिबिम्ब से उसे भयभीत कर कुएं में कूदने को विवश कर देता है |
अतः प्रकृति अपने आप को परिष्कृत करने के लिए सतत परिवर्तनशील है,जिन्हे कभी बदलने के लिए बाध्य किया गया वह पुनः अपने मूल स्वरुप में आएंगे और जो मूलस्वरूप में नहीं आएंगे वह मूल्यहीन हो जायेंगे|
अतः भारतमाता और उसका भगवान एक नयी श्रष्टि की संरचना के लिए आतुर है ,जहाँ न भय हो ,न राग हो ,न द्वेष हो ,न भ्रष्टाचार हो और न चरित्रहीनता ही ,जिससे इस देश की धरती पर हॉकी मैच की विजय के मद में डूबे वेबकूफ विदेशी युवा इस देश के नागरिकों की ओर देखकर अपना अभद्र रूप दिखाने के लिए आतुर न हो जाएँ |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh