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शादी पैसों की बर्बादी नहीं ,अपितु एक पवित्र बंधन है | वैसे तो संसार में जन्म लेना भी एक बंधन ही है ,जगत में जो भी हो रहा है सब बंधन कारक ही है,पर इन सब के बीच यदि एक बंधन में और बंधा जाये,तो कुछ बुराई नहीं | और आजकल के समय में तो शादी बहुत जरूरी है | हमारे बाबा जी कहते,लड़का हो या लड़की उचित उम्र में शादी कर दो ,अपनी पारिवारिक जिम्मेदारी संभालेगा,बाल -बच्चे पालेगा | नहीं तो आवारा बन जाएगा और समाज में खड़े होने लायक भी नहीं रखेगा तुम्हे |
पर धन का अपव्यय नहीं करना चाहिए,दोनों परिवार मिलकर नवदम्पत्ति को अपना नया घर बसाने में आर्थिक सहयोग करें,न कि एक ही दिन संचित धन को खर्च कर दें |
किसी भी समाज का निर्माण संस्कार से होता है | यदि हम अच्छे संस्कार देंगे तो अच्छा समाज बनेगा,नहीं तो मनुष्य हर पल विनाश की ओर ही चल रहा है | और जब उसे अपनी गलती का अहसास होता है ,तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ,तब शायद वह अपने किये हुए का पश्चाताप भी नहीं कर सकता |अतः आवश्यक यह है हम जीवन का प्रत्येक दिन ,प्रत्येक पल सोच समझकर जियें |
हमारा हर कार्य एक अच्छा संस्कार बनकर हमारी उन्नति का मार्ग प्रसस्त करे और हम कल्याण पथ के पथिक बन सके ताकि हमारा जीवन “आत्मनो मोक्षार्थ,जगत हिताय” हो सके |
इसी सोच के साथ हम धन का अपव्यय रोकें और सुविचारों से विवाह जैसे पवित्र कार्य से अपना गृहस्थ आश्रम धन्य बनाये |
क्यूंकि कलियुगी सतलोक आश्रम से सुगृहस्थ आश्रम ही सर्वश्रेष्ठ है |
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