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शीर्षक का प्रथम शब्द सुशील कुमार शिंदे ने अरविन्द केजरीवाल के लिए उपयोग किया और दूसरा शब्द एक राजनैतिक क्षेत्रीय पार्टी की छोटी बहू ने अपने राज्य की वर्तमान स्थिति को बताने के लिए प्रयोग किया | कल को कर्ण सिंह के बेटे की तरह यह छोटी बहू भी भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो जाये तो कोई आश्चर्य न समझा जाये ,शायद ससुर भी इस कार्य को , अपनी छोटी बहू की बुद्धिमानी ही समझे,क्यूंकि वर्तमान प्रधानमंत्री “सबका” अंत करने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ हैं,ऐसी स्थिति में परिवार का कोई तो सरकार में रहना चाहिए ,जिससे कुल की इज़्ज़त बनी रहे | बगावती सुर आवश्यक नहीं जनता के द्वारा ही सुनायी दें,अपने आसपास के लोग भी कानाफूसी करने लगते हैं यदि उन्हें कुछ गलत लगता है तो,एक कर्मठ पिता अपने अकर्मण्य जवान बेटे के खिलाफ और एक ईमानदार बेटा,अपने बेईमान पिता के खिलाफ भी आवाज़ उठाने से नहीं डरता,पर जिसको सुना ,अनसुना करने की अादत हो उसका विनाश तय है|
एक्चुअली,राजनीति के क्षेत्र में ही नहीं ,हमारे समाज में भी ऐसे एडे लोगों की संख्या बहुत है,जो हर छोटी बात का भौकाल बनाते हैं और हर बड़ी ,गंभीर बात को धीरे से टाल देते हैं |
इसी बजह से भ्र्ष्टाचार और अपराध बढ़ते हैं और समाज एवं देश का ढांचा दिनोंदिन बिगड़ता जाता है|
आशा है भविष्य में ऐसे लोगों की संख्या कम होगी,क्यूंकि आज हर एक खबर को सही ढंग से समझने वाले लोग भी बढ़ रहे हैं,उन्हें, कौन एडा है? और कौन भौकाल बना रहा है? ,सब अच्छे से समझ में आता है |
“जागो नेता जागो ”
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