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मैंने कहीं पढ़ा,किसी दार्शनिक का वक्तव्य,”यश रूपी वैश्या के सेवन की कभी इच्छा मत करो”| क्यों कि,जितना बड़ा नाम होता है ,उस इंसान को उतनी ही बड़ी बदनामी होने का भी डर रहता है|और एक कहावत भी है -“बद अच्छा,बदनाम बुरा”| इसका सीधा अर्थ यह है,यदि आप अकर्मण्य हैं तो कोई बात नहीं ,पर चोर मत बनो | अकर्मण्य इंसान के बारे में माँ -बाप ,परिवार सोचता यह ऐसा ही हैं क्या करें,पर चोर बन जाने पर घर -परिवार के लोग समाज में खड़े होने लायक नहीं रहते | और बदनाम होने के बाद इंसान अंदर ही अंदर घुट -घुट कर जीता है |
मन की शुख शांति सब ख़त्म हो जाती है |पर नियति किसको संत से कातिल बना दे और कब कातिल को संत यह कोई नहीं जानता | संसर्ग दोष,प्रारब्ध लेख आदि अनेक पहलू किस इंसान को कैसी परिस्थितियों में ले जाकर खड़ा कर दे कोई नहीं कह सकता और न समझ सकता |
और अंत में सबके मुख से यही बचन निकलते हैं -यह तो होनी थी ,सो हो गयी,अब क्या कर सकते ,भाई |
ऐसे विचार मेरे मष्तिष्क में उस दिन से उठ रहे,जब से मैंने एक महान ,मूर्धन्य कवि ,साहित्यकार ,गीतकार कविवर संतोषानंद के बेटे के परिवार सहित रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या और बच्ची के बच जाने की खबर पढ़ी|मैं सबसे पहले इन कवि से ९ फैब.२००४ को भोपाल के मेले में आयोजित कवि सम्मेलन में मुखातिब हुआ | बुजुर्ग और अच्छे गीतकारों को साहित्य मंचों पर बाद में सुनवाया जाता है,ताकि अंत तक जनता टिकी रही और कवि सम्मेलन सुचारू रूप से पूर्ण हो| रात्रि में लगभग ३ बजे के आसपास इनकी बारी आयी,जनता के बीच से डिमांड आने लगी-पुरवा आयी रे ,पुरवा सुनाइए | उन्होंने सुनाना प्रारम्भ किया,कुछ लोगों ने सीटी मार दी,पर उन्हें अच्छा नहीं लगा | कविवर ने टिप्पणी की-यह कुछ लोग क्षेपक जैसे हैं,इन्हे पता होना चाहिए,यह कवि सम्मेलन है ,नौटंकी नहीं |
जैसे -जैसे इंसान की सोच बढ़ती है,उसकी सीमायें घटती है और मर्यादाएं बढ़ती हैं,ऐसा मेरा अपना विचार है |मेरे बाबा जी बचपन में मुझसे कहा करते थे -जो विचारशील है,उसके लिए जीना कठिन है और जिसका कोई सिद्धांत ही नहीं ,उसे क्या | कैसे भी जिए ,कहीं भी रहे ,कुछ भी खाए ,कुछ भी करे |
पर यह सब सुनकर -पढ़कर ऐसा लगता है,प्रारब्ध भी कोई चीज होती है ,जिसके आगे सब हार मान जाते हैं|
मेरे पिता जी ने एक बार मुझसे कहा,” यह लक्ष्मी (पैसा ) शुरू से अंत तक दुःख ही देती है,जब न हो तो ,कमाने में कष्ट,कमा लो तो रखने में कष्ट,रख लो तो खर्च कैसे करें इसका कष्ट और खर्च हो जाये ,तो पुनः कैसे कमाए”|
पर आज के इस युग में हर इंसान फर्ज़ीवाड़े ( नैतिकता से नहीं,अनैतिकता से )से पैसे कमाने की घुड़दौड़ में शामिल है,और इसी चंगुल में फंसकर बहुत अच्छे लोगों का जीवन बर्बाद हो रहा है | जो होना था,वह तो हो गया ,अब चाहे जैसी इन्क्वारी हो ,क्या फर्क पड़ता |
अतः मेरे साथियों और पाठको,मेरे जेब में आने वाला प्रत्येक सिक्का,मेरे खून -पसीने की कमाई का ही हो,यह सुनिश्चित करना बहुत आवश्यक है |
“सभी का कल्याण हो” | इसी शुभेच्छा के साथ-आप सबका -PKDUBEY.
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