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बेसिक क्लास में एक निबंध पढ़ा था,जिसमे कुछ काव्य की पंक्तियाँ भी कुछ यूँ लिखी थी –
दीवाली प्यारी आती है ,दीवाली न्यारी आती है.
घर को नया बनाने को ,सफेदी से पुतवाने को,
फूलों से सजवाने को ,दीवाली प्यारी आती है ||
आज इस उम्र में भी वही पंक्तियाँ मनोमष्तिस्क में फिर से रेखांकित हो जाती हैं ,दीवाली के आने पर | पर आजकल कुछ नया भी पढ़ना पड़ता है ,जैसे -फरीदाबाद के पटाखा बाज़ार में आग ,करोडो का नुकसान,वातावरण में प्रदूषण ५ गुना ,८ गुना बढ़ा आदि -आदि | इन सबके लिए कौन जिम्मेदार है?यह सब कैसे रुकेगा?क्या पटाखे फोड़ना आजकल हर उत्सव की पहचान बन गया है ?क्या बच्चों और हमारे नेताओं का जन्मदिन ,इलेक्शन के रिजल्ट्स,शपथग्रहण समारोह,वैवाहिक कार्यक्रम बिना पटाखों के अपनी पूर्ण शुभता को नहीं पाते?आदि अनेक प्रश्न इस देश के बुद्दिजीवियों के मष्तिष्क में कौंधते रहेंगे और समाज के कुछ अपने आप को काबिल समझने वाले लोग सुतली बम्ब फोड़कर रात्रि में शांति से सोये हुए छोटे बच्चों और अनुभवी बुजुर्गों की नींद भंग करते रहेंगे |
“शुभ दीपावली”
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