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“राम और काम”

SUBODHA
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आज हमारे समाज के कुछ समूह ,”पियो ,खाओ और ऐश करो” के सिद्धांत पर ही जीवन जी रहे हैं,उनके विचारानुसार हमारी संस्कृति में सेक्स एक तैबू है जिस पर खुले आम चर्चा करने से हाय -तौबा मचने लगती है ,हमारे देश में | पर मेरे विचारानुसार सेक्स तैबू नहीं ,एक मर्यादा है |
मेरे प्राइमरी का एक विकलांग साथी पढाई में बहुत अच्छा ,बहुत सुन्दर हैंड राइटिंग,५ वी क्लास से ही गलत रास्ते पर चल दिया और १० वी में आते-आते fail हो गया,पढाई छूट गयी,एक दिन खेत पर जब मैं बाबा जी के साथ कृषि कार्य में सहयोग कर रहा था ,तो बाबा जी ने पूछा-तुम्हारा वह मित्र कैसा है? मैंने कहा -अब पढाई छोड़ दी उसने ,बाबा बोले -अरे ! पढ़ लिख लेता ,तो कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाती ,और विकलांग इंसान के लिए सरकारी नौकरी में आरक्षण भी होता है ,सरकारी नहीं तो प्राइवेट ही सही,तभी मुझे समझ में आया यह आरक्षण क्या होता है | टीन ऐज(thirteen to nineteen ) बनने विगड़ने का समय होता है ,इस उम्र में काम चिंतन तुम्हारा विनाश और राम चिंतन तुम्हारा कल्याण कर सकता है|
ऐसी ही एक दूसरी सत्य कथा-एक चार बच्चों की माँ,बड़ा लड़का लगभग १८ वर्ष का,जो गाजियाबाद में नौकरी करता था ,और उसके तीन बेटियां,उसका पति बहुत सीधा और कर्मठ,उस अधेड़ उम्र की महिला ने कुसंग में पड़कर अपने पति की ह्त्या करवा दी और उसका दोष अपने दो देवर पर लगा दिया | किसी तरह से देवर छूटे और अपराधी पकड़ा गया,यह कुसंग का भयावह परिणाम है,स्त्री कब वहक जाये ,कैसे वहक जाये,कोई नहीं जानता,जरूरी नहीं सेक्स ही जिसकी वजह हो और बाद में पश्चाताप के अलावा कुछ शेष नहीं रहता | अतः स्त्री के लिए ईश्वर आराधना ,राम चरणो में रति होना ,पुरुष से भी ज्यादा जरूरी है |
ऐसा ही एक तीसरा उदाहरण,हमारे फूफा जी के बड़े भाई ,श्री हरी नारायण तिवारी,बचपन से ही काम(सेक्स) की कोई इच्छा नहीं,कृषि का कार्य करते और बाहर मंदिर में बैठे रहते बच्चों के साथ खेलते ,मात्र भोजन के लिए घर में आते,उनकी युवावस्था में गांव के कुछ सोहदों ने एक महिला को कुछ पैसों का लालच देकर ,खेत में कार्य करते वक्त उनके पास जाने को कहा | महिला गयी,तो वो जिस हासिये (sickle) से फसल काट रहे थे ,उसी से उन्होंने उस महिला को बहुत मारा,किसी तरह से वह महिला वहां से जान बचाकर भागी ,बाद में यह बात सबको मालूम पडी,जब उस महिला ने गांव में आकर पूरी कहानी का बखान किया |
अतः साथियों,मनुष्य ,पशु -पक्षियों की भांति खुले आम तो सेक्स क्रीड़ा नहीं कर सकता और न ही बाल -बच्चों के बीच में बैठकर सेक्स एजुकेशन का पाठ पढ़ा सकता,वह समाज और समूह में बैठकर परमार्थ चिंतन,ईश्वर के प्रति अनन्य समर्पण और परोपकार के पथ पर आगे बढ़ने की ही चर्चा कर सकता है,यही मेरा मानना है और यही भारतीय संस्कृति है |

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