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“शिक्षक”

SUBODHA
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वैसे तो हमारी संस्कृति में नित्य ही गुरु और माता-पिता, बड़े -बुजुर्गों का अभिवादन और सेवा करने की परम्परा है,पर फिर भी अंतर्राष्ट्रीय परम्परा का अनुकरण करते हुए हमने भी कुछ दिवस निर्धारित किये,जिन्हे भारत की महान कर्मठ विभूतियों के जन्म दिवस से आबद्ध भी किया,इसी परिपाटी में आज ५ सितम्बर की दिनांक, भारत के द्वितीय राष्ट्रपति,एक महान विद्वान,दार्शनिक,समाज के उद्बोधक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को समर्पित है,जिसे हमारा देश शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है |
हमारे दर्शन के अनुसार गुरु एक ही होता है,जो जीव को ब्रह्म से साक्षात्कार करवा दे,पर शिक्षक कोई भी और अनेक हो सकते हैं | भागवत की कथा में दत्तात्रेय जी के २४ शिक्षा गुरुओं का वर्णन आता है,जिसमे उन्होंने हर एक शिक्षक से क्या सीखा यह भी उल्लेख है|
शिक्षक समाज में रहना और जीवन यापन के साधन सिखाता है तो गुरु समाज से वैराग्य और ब्रह्मसाधना सिखाता है| बाबा तुलसी ने तो यहाँ तक कह दिया-
“उमा राम सम हित जग माहीं | गुरु पितु मातु बंधु कोउ नाहीं||”-भगवान शंकर ,माता पार्वती से कह रहे,हे उमा ! इस जगत में राम के समान जीव का हितैषी, गुरु ,माता पिता ,भाई और दूसरा भी कोई नहीं | प्रत्येक सांसारिक सम्बन्ध में कुछ स्वार्थ हो सकता है,परन्तु जीव और ब्रह्म का निस्वार्थ सम्बन्ध अनेक जन्म -जन्मांतर से है,शायद इस शरीर धारण करने का भी सबसे बड़ा उद्देश्य भी यही है,जीव ब्रह्म को जाने,पहचाने |
पर भोगवादी सोच रखने वालों को ऐसी बातें फालतू महसूस हो सकती हैं,अतः फिर भी प्रत्येक मानव से एक आदर्श जीवन जीने की प्रत्येक समाज अपेक्षा रखता है और आदर्श जीवन के सिद्धांतों का समावेश एक आदर्श शिक्षक ही कर सकता है किसी बच्चे के जीवन में | प्रभु के विशेष अनुग्रह से मुझे हमेशा जीवन में अच्छे शिक्षक मिले,जिन्होंने मुझ पर अन्य साथियों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही ध्यान दिया और आगे भी मुझ पर प्रभु और शिक्षकों का विशेष ध्यान बना रहे,यही सर्वशक्तिमान परमात्मा से प्राथना और याचना |
|||”तस्मै श्री गुरवे नमः”|||

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