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नरेंद्र मोदी ने प्रदेश से देश तक की राजनीति को नयी दिशा दी,यह कहना कतई गलत नहीं है|शासन,प्रशासन में सुधार,सरकारी कार्यालयों की सफाई और सरकार के मंत्रालयों में सामंजस्य बिठाने के कार्य से लेकर पासपोर्ट की रिन्यूअल इन्क्वायरी और स्वहस्ताक्षरित प्रमाणपत्रों जैसे कानून को बनाना, एक अच्छा प्रमाण है | अभी हाल ही में कुछ मंचों पर मुख्यमंत्रियों की हूटिंग से उन पर और उनकी कार्यशैली पर वाद -विवाद पुनः होने लगा,कुछ कॉंग्रेसी नेता यह कहते नज़र आये,यही उनकी कार्यशैली है,अपनी पार्टी के अंदर ही उन्होंने अपने राजनैतिक साथियों का अंत कर दिया,यह कितना सच है इसका ज्ञान हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री, और उनके अलावा सर्वशक्तिशाली परमात्मा को ही होगा |
पर कई दूसरे राज्यों में भी कुछ राजनेताओ की हत्याएं हुईं,मेरे बाल्यावस्था के दौर में फर्रुखाबाद के कद्दावर नेता ब्रह्मदत्त दुबे की हत्या हुई,अभी कुछ माह पूर्व आज़मगढ़ में एक नेता की हत्या हुई , पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुछ नेताओं की हत्या हुई और अनेक दंगे भी हुए,क्या इस देश में जितने भी दंगे और हत्याएं हो रहीं,सबका दोषी एक ही इंसान है? ऐसा कदापि संभव नहीं |
अब बात करते हैं विगत स्वतन्त्रता दिवस पर प्रधानसेवक के भाषण की,(इस देश में कुछ शब्दों को बदलने की आवश्यकता है जैसे -पुलिस को समाज सुधारक,जेल को सुधारगृह ,विधायक और मंत्रियों को जनसेवक-ऐसा कहने से उनकी मानसिकता कुछ बदलेगी और एक आम आदमी इनसे डरेगा नहीं ),वह उनका भाषण कम था,बातें ,प्रवचन,अपनी प्रजा को उपदेश अधिक था और सही भी है ,भारत जैसे देश में जो कथाकारों और उपदेशकों का देश है,वर्तमान समय की मांग है ऐसे उपदेश ही दिए जाएँ , गन्दगी में मज़े से जीने और गरीबी को दुर्भाग्य मानने वाली जनता को | अवश्य ही इस देश के कथाकारों को भी स्वच्छता और शिक्षा पर प्रवचन देना चाहिए,राम कथा और भगवतगाथा के बीच -बीच में |
पर एक यक्षप्रश्न इस सरकार से यह भी है,कुछ ही ग्राम क्यों आदर्श बनाये जाएँ,शेष ग्राम के वासियों ने क्या अपराध किये | क्यों न सांसद,विधायक,जिला परिषद सदस्य,क्षेत्र के अधिकारी गण,शिक्षक,चिकित्सक,विचारक ,ग्रामप्रधान और युवक -युवती एवं अन्य सभी सामान्य जनमानस मिलकर अपने -अपने ग्राम का पूरा कायाकल्प करें |
और दूसरी एक चिंता जो मुझे डिजिटल इंडिया को लेकर है,(जिसके ऊपर आईडिया वालों ने एक प्रचार अभियान भी टीवी पर चलाया -हम नहीं बनेगे उल्लू-तो क्या अभी तक हम सब उल्लू थे,खैर उल्लू इतना भी बुरा पक्षी नहीं है,आज के समय में उल्लू बनकर भी लक्ष्मी आ रही,तो हर कोई बनने के लिए तैयार हो ही जाएगा ), कहीं ऐसा न हो, हर मोबाइल पर अश्लील दृश्य का लुत्फ़ उठाने लगे, इस देश की किशोर और युवा पीढ़ी और कुछ वयस्क और बुजुर्ग भी,क्यों की दिल तो बच्चा है जी,थोड़ा सा कच्चा है जी |
अतः डिजिटल इंडिया से पहले अश्लील साइट्स , MMS ,अश्लील भाषा और दंगे भड़काने वाले चित्रों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाना अत्यावश्यक है |
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