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“रामचरितमानस के मेरे प्रथम श्रोता”

SUBODHA
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शहीद रामानुज पूर्व माध्यमिक विद्यालय अंत्योदय नगर प्रधानपुर,रसड़ा,जनपद-बलिया में १९९३-९४ के सत्र में मैंने क्लास-६ की शिक्षा अर्जित की,उस वक्त बाबू जी टोंस नदी पर निर्माणाधीन पुल पर कार्यरत थे | विद्यालय से वापस आने के बाद मेरे पास स्पेयर समय रहता,नदी के पास एक आम के बगीचे में एक हमउम्र लड़का आता था, जिसके पिता जी वहीं खेत में सब्जी वगैरह का कार्य करते थे,नदियों के किनारे अधिकतर सब्जी और तरबूज ,खरबूज की ही अच्छी फसल होती है,जिसे कार्डस खेलना आता था,उसने मुझे भी कार्ड खेलना सिखाया | उसी बगीचे के एक ओर एक बुजुर्ग जिनकी उम्र लगभग ७० से ऊपर ही रही होगी,अपने खेत के पास ही कुटी बनाकर अपना घर छोड़कर रहने लगे थे | उनके परिवार का कोई सदस्य वहीं पर भोजन लेकर आ जाता था,उन्हें सब तूफानी दादा कहते थे | एक बार मैंने अपने बाबू जी से जिज्ञासा प्रकट की ,इन्हे सब तूफानी दादा क्यों कहते हैं? बाबू जी ने बताया-इनके जन्म के समय तूफ़ान आया था | तूफानी दादा बहुत आचरण संपन्न थे,रामचरितमानस के बड़े अक्षरों वाला एक ग्रन्थ उनके पास था,जिसे वो अपने अधिकतर समय में नदी में स्नान वगैरह से निवृत्त होकर पढ़ते रहते थे |
इस देश में ब्राह्मणों का सम्मान करने की सनातन पद्धत्ति है, और कुछ न कुछ लाभ भी अवश्य होता होगा, अन्य लोगों को; तभी तो हर इंसान किसी नेक गुरु की खोज में रहता है और एक ब्राह्मण भी अपने से अधिक योग्य,परमहंस, तत्वज्ञ गुरु की शरण में जाना चाहता है | इस देश में बाबा शब्द सम्माननीय और प्यारा है,देश के प्रत्येक राज्य में इस शब्द को या तो छोटे बच्चे के लिए या बड़े बुजुर्ग के लिए उद्बोधन रूप में उपयोग किया जाता है | पूर्वांचल में बाबा शब्द ,ब्राह्मणों के लिए और बाबूसाहब -क्षत्रिओं के सम्बोधनार्थ उपयोग में लाया जाता है | मुझे, तूफानी दादा, छोटे बाबा कहकर पुकारते,जब वह बगीचे में रामचरितमानस का स्वाध्याय करते तो मैं भी उनके करीब जाकर बैठ जाता था,एक दिन तूफानी दादा ने मुझसे कहा -तनिक तुम्ही पढ़ीं, छोटे बाबा- रामचरितमानस मैं ही पढूं | मैंने रामचरितमानस को लयबद्ध स्वर में पढ़ना प्रारम्भ किया | शनैः -शनैः वह मेरा प्रतिदिन का कार्य बन गया,एक दिवस जब “राम वन गमन और दसरथ मरण” का प्रसंग चल रहा था,दादा रोने लगे,दादा को रोता देख मैं मौन हो गया,उस उम्र में मुझमे लयबद्धता अधिक थी ,पर भावुकता कम थी और दादा में भावुकता अपने चरमोत्कर्ष पर थी | कुछ माह बाद जब एक दिन मैं विद्यालय से वापस आया,तो मुझे ज्ञात हुआ -तूफानी दादा का स्वर्गवास हो गया,उनकी अंतिम यात्रा को मैंने देखा,मुझे उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने की बहुत इच्छा थी,पर मैं बाबू जी से कह न सका और मैं भी सोच रहा था-पता नहीं वहां नदी के किनारे क्या होता होगा,कहीं मैं डर गया तो |
पर आज भी जब मैं रामचरितमानस पढता हूँ,तो मुझे मेरे प्रथम श्रोता बहुत याद आते हैं | “जय श्री राम”

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