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“जल प्रलय और वेबस जनमानस”

SUBODHA
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देश के अधिकतर भागों और विश्व के कुछ अन्य देशों में भी प्रकृति बाढ़ का मंजर लेकर उपस्थिति है,प्रभावित जन और पशु पक्षी भी अत्यधिक व्यथित और व्याकुल हैं | प्रकृति के आगे सब वेबस और लाचार नज़र आते हैं,शासन और प्रशासन भी वर्षा की पूर्व उद्घोषणा के सिवाय,और कुछ नया करने में असमर्थ है | कुछ माह पूर्व जिन्होंने अपने भाषणो से देश और विश्व को प्रभावित कर रखा था,वह ऐसे मुद्दों पर मौन रहने में ही अपनी योग्यता समझते हैं,ज्यादा भयावह स्थिति होने पर फेसबुक और ट्विटर तो है ही और सरकारी कोष से कुछ पैसे दे दिए जायेंगे मरने वालों को | शायद जब तक नदियां जोड़ी जाएगी ,तब तक सब ऐसा ही चलता रहेगा अथवा हो सकता है नदियों के जोड़ने के बाद पूरे देश में एक साथ जल प्रलय भी आ सकती है,क्योंकि शाश्त्र भी यही कहते हैं ,सम्पूर्ण प्रलय जल से ही होगी | कूप (कुण्ड ) और सरोवरों का विलीन होना भी ऐसी स्थिति आने के लिए जिम्मेदार है | पहले हर एक गांव के बाहर २-४ तालाब और गांव के अंदर २-४ कुएं हुआ करते थे,अब हम आगे बढ़ रहे हैं,कुएं सब तोप दिए गए और तालाब में कचड़ा भरकर मकान बना लिए गए,जिसका परिणाम सामने है | पहाड़ों के दरकने के पीछे,कहीं न कहीं महानगरों में सैकड़ों फिट गहरी होने वाली खुदाई भी एक कारण है,कोई भू -वैज्ञानिक इस मुद्दे पर अधिक प्रभावशाली ढंग से प्रकाश डाल सकता है |
मौत का मंजर अपनी आँखों देखना सबसे भयावह होता है,एक ओर मौत का तांडव ,दूसरी ओर करुण क्रंदन,जिसको मैंने अपने प्रधानपुर प्रवास के दौरान टोंस नदी में बाढ़ के कारण हुयी एक नाव दुर्घटना में देखा |
अवश्य ही हमें तालाब और कुओं पर पुनः ध्यान देने की आवश्यकता है,हर घर के बाहर एक २०-३० फ़ीट गहरा सोेकिंग पिट हो,और हर एक सोसाइटी में एक आधुनिक स्वच्छ तालाब हो जिसमे वर्षा का सारा जल एकत्रित होता रहे,इससे पृथिवी के अंदर का जल -स्तर भी बढ़ेगा और बाढ़ एवं सूखा के हालात से भी कुछ निजात अवश्य मिलेगी |

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