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“पहाड़,गांव और इंसान”

SUBODHA
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सर्वप्रथम मैं अपने चित्त और मन की गहराई से पुणे जनपद के अम्बे गांव तालुका के मालिन गांव के उन दिवंगतों को एक मौन दीर्घ प्रार्थना समर्पित करता हूँ ,जिनका पूरा का पूरा परिवार भयानक प्राकृतिक त्रासदी की भेट चढ़ गया,जैसा कि केदारनाथ त्रासदी में हुआ,वो तो इससे भी कई गुना भयंकर त्रासदी थी |
तदुपरांत मैं भव्य बहुमंज़िला भवन निर्माताओं और इसके आर्किटेक्चर,ऐसे निर्माण की सहमति देने वाली सरकार को कड़े शब्दों में आगाह करने चाहता हूँ -प्रकृति की विनाश लीला प्रारम्भ हो चुकी है,सचेत होइए | अब कोई भी इंसान सोचेगा,मालिन गांव की त्रासदी से भव्य इमारतों का क्या सम्बन्ध,उस गांव में तो सब घर कच्चे ही थे ,इसलिए ऐसा हो गया | पर पक्के भवन बनने के लिए जो गिट्टी,सीमेंट,बजरी आ रही है यह सब पहाड़ों को काट -काट कर आ रही है |
अब अगला प्रश्न,यदि भवन नहीं बनेगे ,तो हम रहेंगे कहाँ | उनसे मेरा भी प्रश्न -जितने बन कर खड़े हुए हैं,क्या सब में कोई न कोई रहता है -शायद इसका उत्तर आप सब भी जानते होंगे | अधिकतर इमारतें खाली पडी हुयी हैं -बिल्डर तो यह सोचता ,कुछ फ्लैट्स भी बिक गए तो उसकी पूरी कीमत बसूल हो ही जाएगी | पर मेरे भाई,यदि प्रकृति रुष्ट हुयी तो,सारी कमाई ,बहुमंज़िला भवन ,पूरी की पूरी बैंक,सब इंसान,पशु -पक्षी ताश के पत्तों की तरह ढह और बह जायेंगे ,अतः हर कदम सोच समझकर उठाना बहुत जरूरी है | एक इंसान शहर में ५-६ फ्लैट खरीदने के बजाय,१ ही फ्लैट खरीदे | एक्स्ट्रा पैसों से गांव में खेत खरीद कर पेड़ लगाये,कृषि करवाये,पशु पालन करे,दुग्ध व्यवसाय बढे ,सरकार भी इन कार्यों को बढ़ावा दे,तो ही देश बचेगा | मैं कोई भविष्यवक्ता नहीं,पर समय पर चेतने की अति आवश्यक आवश्यकता है,नहीं तो सब बेमौत मारे जाओगे,कुल में कोई रोने वाला भी नहीं बचेगा |
अब समय आ गया है,खेतों की ओर लौटो ,यह भारत माता अपनी संतान का पेट भरने में पूर्ण सक्षम है,शहर में रहकर भी गांव से नाता जोड़ो,कोई ऐसी व्यबस्था की जाये-शहर के लोग किसान से सीधा अनाज और सब्जी खरीदे,अथवा हमारे द्वारा खर्च किये गए पैसे सीधे गांव की ऊपर खर्च किये जाये | इस देश में अनाज की एक बैंक( जगह -जगह पर गोदाम ) हो,हम उससे अनाज या आटा खरीदे,और हमारा पैसा सीधा किसान के अकाउंट में जाये| इससे शहरों में पलायन रुकेगा और गांव के लोग भी सुखी होंगे,सर्वागीण विकास होगा |
“जय हिन्द ,जय भारत ”

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