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“कन्या तेरे हाथ में मैं तेज़ाब चाहता हूँ|||”

SUBODHA
SUBODHA
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कन्या तेरे हाथ में, मैं तेज़ाब चाहता हूँ ||
चूड़ी वाले हाथों में, अब तलवार चाहता हूँ ||
कुदृष्टि भरी निगाह पर, अब तेज़ाब की बौछारकर ||
ओछे मनचलों पर अब ,तलवार का तू वार कर||
कन्या तेरे हाथ में, मैं तेज़ाब चाहता हूँ ||
चूड़ी वाले हाथों में, अब तलवार चाहता हूँ ||
दुर्दांत पापियों का अब, अंत चाहता हूँ ||
दिखला दे जग को तू भारत की रणचंडी है||
सावित्री,सीता,गीता तू,और तू ही तो शिखंडी है ||
तेरी लाज हरण करने वाले के , मैं शत खंड चाहता हूँ ||
कन्या तेरे हाथ में, मैं तेज़ाब चाहता हूँ ||
चूड़ी वाले हाथों में, अब तलवार चाहता हूँ ||
इस भयंकर कलिकाल में, जब हर तरफ हाहाकार है ||
बस तू ही इस श्रष्टि की, एक मात्र तारणहार है ||
जब हर रिश्ते में एक छल हो,साथी बलात्कारी है||
याद कर तू सत्य को,नारी नर से भारी है ||
तू सृष्टिकारक ,सृष्टिपालक ,सृष्टि की संहारक है||
तू प्रचंड हो गयी तो,श्रष्टि की उद्धारक है ||
तू ध्रुव,प्रहलाद की जननी,भगत, आज़ाद तेरे पूत हैं ||
सुभाष,राजगुरु,बिस्मिल,अशफ़ाक़ जैसे तेरे सपूत हैं ||
कन्या,मैं तेरे यौवन से इनका पुनर्जन्म चाहता हूँ ||
चूड़ी वाले हाथों में, अब तलवार चाहता हूँ ||
कन्या तेरे हाथ में, मैं तेज़ाब चाहता हूँ ||

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