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पर्दा,एक आवरण जो कुछ ढक सके और शायद गंदगी /असत्य को ही ढकने की आवश्यकता महसूस की जाती है अथवा हमारे पास तक गन्दगी न आ सके,इसलिए पर्दा चाहिए | सत्य तो सर्वत्र विद्धयमान,सर्वदा आलोकित | अच्छाई को गंदगी से बचाने के लिए ,पर्दा की नहीं,गंदगी साफ़ करने की महती आवश्यकता है | भोजन सामग्री को भी ऐसे ढका जाता है,कि उससे वायु संचरण आराम से हो सके और उसमे कुछ गिरने से उसे बचाया जा सके,यदि हवा नहीं जाएगी ,तो वह भी खराब हो जाती है | आजकल भोजन के लिए जालीयुक्त आवरण भी उपलब्ध है,अधिक हवा आने -जाने के लिए |
मैंने इस देश की कामिनी को काले बुर्के की ओट में कोठे से बाहर आते देखा और वैसे भी न जाने कितने दुष्कर्म और गंभीर अपराध ,परदे के पीछे से हो रहे हैं,तभी तो इस देश के बुद्धिजीवियों,विचारकों और चिंतकों ने गाड़ियों और बसों से काले सीसे हटवाने का फ़रमान जारी कर दिया |
हमारे समाज सुधारकों ने महिलाओं के लिए पर्दा को,एक कुप्रथा के भी रूप में रेखांकित किया और इसके उन्मूलन के लिए उल्लेखनीय प्रयास किये |
पर आज जब हर तरफ,महिला अत्याचार और बलात्कार का हाहाकार मचा हुआ है,तब परदे की नहीं;अपितु एक नए शंखनाद की आवश्यकता है,घर -घर में दुर्गा सप्तशती के मंत्रो के गूँज की आवश्यकता है,सब कचरा इकट्ठा कर के उसमे आग लगाने की आवश्यकता है,फिल्मो में दिखाए गए रेप सीन को चाव से देखने के वजाय,इस देश के यौवन को “सीताराम ” का उद्घोष करने की आवश्यकता है |
हमारे बाबा जी खेत में कार्य करते,यदि आसपास के खेत में किसी दूसरे की पत्नी / बहू आ जाती,तो उसकी तरफ अपनी पीठ करके उसके पति का नाम लेकर पूछते- बहू बेटा ,रामसेवक आज बाज़ार गए क्या? -इस वाक्य में पूरा मर्यादा पुरुषोत्तम प्रतिबिंबित होगा ,यदि कोई देखने में सक्षम है तो |
नहीं तो दिग्विजयी भी परनारी के मोह पाश में अपने आप को जकड़े हुए,अपनी महानता का उस देश में उद्घोष करेंगे -जिसने , मातृवत परदारेषु, का आचरण विश्व को समझाया |
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