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“हास,परिहास और उपहास”

SUBODHA
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हास्य रस,साहित्य का श्रृंगार है | दैनिक जीवन में भी यह अतिआवश्यक आवश्यकता है | चिन्तारत और तनाव युक्त मानव मष्तिष्क ,एक मुस्कान / हंसी से अत्यधिक लाभ पाता है | आजकल तो हास्य योग /लाफ्टर चैनेल /कॉमेडी नाइट्स आदि अनेक उपाय केवल लोगों को हँसाने के लिए किये जा रहे हैं | साहित्य में भी हास्य और व्यंग्य के कवियों का अविस्मरणीय योगदान है |
BUT EVERYTHING MUST HAVE ITS LIMITS & BOUNDARIES.
बाबा तुलसी ने लिखा-
खल परिहास होइ हित मोरा | काक कहइ कल कंठ कठोरा ||-मूर्ख के परिहास -उपहास करने से मेरा भला होगा,क्योंकि कौए को तो कोयल की सुरीली आवाज़ भी कठोर प्रतीत होती है | शायद परिहास और उपहास किसी मूर्ख का ही कार्य हो सकता है, विद्वान कभी किसी का मज़ाक नहीं उड़ाएगा |
सामान्यतः हास्य के सम्बन्ध में दो प्रकार के सेंस होते हैं -GOOD SENSE OF HUMOUR & BAD SENSE OF HUMOUR.मेरा मानना है ,एक तीसरा प्रकार भी है – STUPID SENSE OF HUMOUR.
मेरे गांव का एक इंसान रामायण की भी बात करेगा ,कोई उदाहरण पेश करेगा ,तो गाली देकर ही प्रारम्भ करेगा ,आर्थिक तौर पर भी दिनोदिन अवनति होती गयी उसकी और कब फटे हाल हो गया, पता नहीं चला | जब उसके दूसरे भाइयों ने संस्कृत की शरण ली,तब पुनः कुछ उत्थान होना शुरू हुआ | हमारे बाबा जी कहते,मानव की जवां पर देवी -शारदा का वास है, हर बात सोच समझ कर बोलो,तो ही वाणी से अपना और दूसरे का कल्याण होगा |
आजकल मानव हँसने ,हँसाने के चक्कर में न जाने क्या -क्या बोल जाता है,सामने वाला भले ही न हँसे पर खुद ही लोट -पोट हो जायेंगे,चलो खुद का स्वास्थ्य तो उत्तम हो ही रहा दिनों दिन |
उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद में हमारे बुआ जी का घर,एक बार बाबा वहां जाकर लौटे ,तो हमें बताया,एक नौजवान अपनी बहन को लेकर रिक्शे से जा रहा था,उसके किसी दोस्त ने बहन को पत्नी समझ कर कुछ गलत मज़ाक कर दिया,नौजवान के पास बन्दूक थी ,उसने बीच चौराहे पर दिन दहाड़े गोली मार दी | इसलिए बिना पूर्ण ज्ञान के किसी पर परिहास -उपहास मत करो |
अपने १२ वी के कॉलेज की मासिक पत्रिका में मैंने एक दृष्टांत अष्टावक्र और जनक जी के ऊपर पढ़ा था –
अष्टावक्र जी महाराज,जब सर्वप्रथम जनक के दरवार में पहुंचे | जनक के सिवाय और किसी ने उन्हें पहचान ही नहीं पाया | सारे दरबारी उन्हें देखकर हँसने लगे,तो अष्टावक्र जी महाराज रोने लगे |जब उन्हें रोता देखकर सब शांत हो गए ,तो अष्टावक्र जी हँसने लगे | राजा जनक ने उनका स्वागत सत्कार किया और बाद में उनके हँसने और रोने का कारण पूछा-
अष्टावक्र जी ने कहा –
राजा जनक के दरवार में भी ज्ञान की कोई क़द्र नहीं इसलिए रोया और मैंने तो सोचा था,
जनक के दरवार में विद्वानो की सभा होगी,पर यहाँ तो सब मूर्ख हैं ,इसलिए हँसा |
बाद में उन्ही अष्टावक्र जी महाराज को राजा जनक ने अपना गुरु बनाया |
अतः हास ,परिहास और उपहास के बीच जो सूक्षम रेखा है,उसका ज्ञान होना अत्यावश्यक है|

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