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आज ११ जुलाई विश्व जनसख्या दिवस है.पहले भी मैं एक ब्लॉग “man power” के शीर्षक से लिख चूका हूँ,आज कुछ और उसमे ऐड किया जाये,इसीलिये आगे उसी शीर्षक से लिखता हूँ.
हमारा वाराणसी का मित्र पुनीत कुमार सिंह,एक बार अपने परिवार के साथ निजी वाहन से कहीं तीर्थयात्रा पर जा रहा था,रास्ते में उसकी गाड़ी एक सड़क पर गड्ढे में धंस गयी,उसने कोशिश की पर नहीं निकली,तब तक वही आसपास से ४-५ मज़दूर आ गए,उन्होंने गाड़ी को पीछे से उठाकर,आगे धकेल दिया.गाड़ी बाहर ,समस्या खत्म.
इसलिए मेरा विचार है,जनसँख्या समस्या नहीं,समाधान है.मानव संसाधन है.उसके नियंत्रण के बिना कुछ नहीं हो सकता.रोबोट और autopilot machines भी कहीं न कहीं मनुष्य ही नियंत्रित करता है.विष्फोट बनाने का काम वैज्ञानिक करता है,विष्फोटक बम गिराने काम नेता करता और करवाता है,अमेरिका का कारनामा , हिरोशिमा और नागाशाकी पर सब जानते हैं.
हाँ,प्रकृति में नियंत्रण सबका आवश्यक है,सभी का संतुलन भी आवश्यक है.प्रकृति की गोद में वन्य जीव भी पलें-बढ़ें यह भी अतिआवश्यक है.
इस अनियंत्रित जनबल को कार्य मिले,यह बहुत आवश्यक है और ऐसा कार्य मिले जिससे उद्पादन क्षमता बढे;राष्ट्र ,उत्थान के नए उदाहरण विश्व के सामने स्थापित करे.
मनरेगा को कृषि के साथ जोड़ना यह एक अच्छी पहल हो सकती है.हर एक राष्ट्र की अपनी विशेषता और कमियां होती है.हमारे यहाँ मशीन्स कम हैं,पर मानव अधिक.
यदि जवान के बच्चे के लिए आर्मी स्कूल हो सकता है,तो मज़दूर और किसान के बच्चे के लिए भी “लेबर स्कूल” और “फार्मर स्कूल” खोले जाएँ.जिसमे निशुल्क और सर्वोत्तम शिक्षा दी जाये.इस देश का हर एक किसान और मज़दूर कोहिनूर हीरे से भी करोडो गुना अधिक कीमती है.
इस सरकार की दिशा यह बताती है,कि परिवर्तन के प्रयास किये जा रहे हैं . ईश्वर और नियति की कृपा से हम सफल भी होंगे.
यह एक राष्ट्र जिसकी जनसँख्या विश्व के २१-२२ राष्ट्र की जनसँख्या से भी अधिक है,विकसित तो क्या “supreme power” बनेगा. “दुनिया के दादा” समझे जाने वाले राष्ट्र भी इस “बाबा” के सामने अपने किरीट सहित नतमस्तक होंगे.
“जय हिन्द ,जय भारत”.
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