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“गुरु”

SUBODHA
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आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हमारे यहाँ गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है,ऐसी ही अन्य तिथियों को भी कोई न कोई पर्व आ ही जाता है. किसी विदेशी विचारक का कथन है,”वर्ष में ३६५ दिन होतें हैं,लेकिन भारत में ३६६ त्यौहार मनाये जाते हैं”.जब मैं बचपन में घर पर रहता था,तो हर माह कुछ न कुछ बनता रहता था,लड्डू,मिठाई इत्यादि.अब तो पता ही नहीं चलता दिवाली कब थी , होली कब हो गयी,विजयदशहरा और रक्षाबंधन भी कुछ होता हैं.बस ड्यूटी और घर-गृहस्थी.दादी भी कहती रहती,नाती घर पर हैं नहीं,तो मिठाई क्या बनाऊं?जब आओगे तुम सब लोग,तभी बनाऊँगी.शहर की मिठाई मुझे स्वादिष्ट नहीं लगती.
हमारे गांव में आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ग्राम देवी की पूजा होती,गांव की परिक्रमा करते हुए,गांव के बाहरी “स्थान देवताओं” की भी पूजा की जाती,ताकि जीव और पशु सब स्वस्थ रहें,वर्षा ऋतु में पशुओं को ज्यादा वीमारी न हो.हमारे बाबा जी को अस्थमा के रोग की वजह से अधिक बोलने में परेशानी होती.एक बार तो मैंने ही दुर्गासप्शती के मन्त्रों से ग्रामदेवी की पूजा करवाई.बड़ा अच्छा लगता.गांव के सब लोग सामूहिक रूप से यज्ञ करते.
गुरु-बहुत छोटा,परन्तु बहुत गहरा और विशाल शब्द है.बाबाजी चाणक्य नीति से सुनाया करते थे,” कोवा गुरु?( गुरु कौन है), यो हितोपदेशः.(जो हितकारी बात बताये)”.
तुम्हारा किसी से झगड़ा होने वाला हो,कोई बीच में आकर एकदम शांत कर दे,समझो तुम्हारा बहुत बड़ा गुरु और हितैषी है |पर जो तुम्हे उकसाकर जलती आग में घी डालने का कार्य करे,समझो वह तुम्हारा विनाश चाहता है |
तुमसे वैर भाव रखने वाला भी कभी यदि कुछ बात करे,तो उसे हितकर बात बताओ,हो सकता है , तुम्हारी बात से उसका फायदा हो जाये ,और वह तुम्हारा मित्र बन जाये |
मात्र आध्यात्मिक जगत में ही नहीं,इस लौकिक संसार में भी हर पल जीव को एक गुरु की आवश्यकता पड़ती है |
गुरु ही जीव का उद्धारक है,वह यदि एक शब्द भी बता दे,तो शिष्य के पास ऐसा कुछ भी नहीं,जिसे बदले में देकर वह उऋण हो सके |
अपने जीवन के लौकिक और आध्यात्मिक गुरु- पूज्य बाबा जी के चरणो में सादर नमन.

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