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“कन्या-मुकुटमणि है,कुलदीपक की शिखा है”

SUBODHA
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आजकल कन्या भ्रूण ह्त्या,लड़कियों और लड़कों का भी शारीरिक शोषण,यहाँ तक की माँ की जानकारी में,स्वयं के पिता के भी द्वारा अनेक जघन्य अपराध आये दिन सुनने को मिलते हैं.मेरा तो विचार है,ऐसी ख़बरों को टेलीविज़न पर प्रसारित करने के बजाय,उसी स्थान पर समाधान के उपाय करने चाहिए.गन्दगी साफ़ करने से मिटेगी ,न कि-हाय -हाय चिल्लाने से.प्रसारण करने से पूरी मानवता शर्मसार होती है.
कोई ज्यादा काबिल इंसान यह भी कह सकता,वह तो ब्रह्मा ने भी किया.मेरा विचार है, इस पर -“यदि ब्रह्मा भी इस तरह के अपराध की मनोवृत्ति रखेगा,तो आजन्म शिव के त्रिशूल से वह पीड़ित किया जाता रहेगा .यही उस कहानी का सार है”.
कन्या पूजनीय है,वह कुल की शान है,वह आँगन की चहक है,उसके घुंघरुओं की धुनि से कुल के कष्ट कटते हैं,वह जीवन का मधुर संगीत है,उसकी बोली वेद मंत्र हैं,वह पिता को जल दान करती है,माता को सहारा देती है,भाई को विश्वास देती है,पति को सलाह देती है और बच्चे को शिक्षा देती है.
हमारे बाबा जी कहते,लड़की ,लड़के से अधिक भाग्यशालिनी होती है. यह हमारी संस्कृति का कथन है -यदि प्रथम गर्भ में कन्या हो,तो वो गर्भ को भी पवित्र कर देती है.जिस कन्या के बाद पुत्र की उत्त्पत्ति होती है,उस कन्या की “पीठ पूजा” की जाती है ,घी -शक्कर से.
हमारे बाबा जी ने अपनी माता जी के कुछ फूल (अस्थि),संचित कर लिए थे,अंत्येष्टि के उपरांत.सोचा किसी और तीरथ में पहुंचा देंगे.जब मैं प्रधानपुर,(जनपद -बलिया) में पढता था,उसी वर्ष(१९९४) बाबा जी ने संगम (इलाहाबाद) ,जाने की सोची. पहले निर्णय किया,प्रथम इलाहाबाद में विसर्जन तदुपरांत-मेरे पास जायेंगे.पर स्टेशन पर उस ट्रैन पर वैठे ,जो मुलसराय तक जाती थी.रास्ते में निर्णय बदल दिया,पहले हमारे पास और वापस आते वक्त -अस्थि विसर्जन.बाबा जी हमारे पास पहुंचे,तभी वहां से एक तीर्थयात्रियों की बस “गया जी” जा रही थी.वहां पिता जी ने बाबा से कहा आप भी चले जाओ,गया में ही आजी के फूल पहुंचा दीजिये.बाबा जी तैयार हो गए.लौटकर आये तो छठ पूजा का त्यौहार था,नदी के किनारे आने वाली हर बहू ,बेटी,महिला बाबा जी के पैर छूने लगी.बाबा जी बोले ,यह तो बहुत पाप हो रहा है,तुम हमें कमरे के अंदर कर के ताला लगा दो.
हमारी तरफ,कन्या के पैर छुए जाते हैं.कन्या को अपने से उच्च कुल में व्याहने का विधान है (ज्ञान से उच्च,धन से उच्च नहीं).धनवान व्यक्ति कमजोर इंसान की लड़की की कोई इज़्ज़त नहीं करेगा,पर ज्ञानवान हमेशा सम्मान रखेगा.
आज त्रिपुण्डधारी भी कन्या को भोग समझ रहे हैं,वह मूर्ख हैं.धर्म और देश पर कलंक हैं. धर्म के सिद्धांतों में परिवर्तन करना बहुत आवश्यक है,आज की नारी,इन कलियुगी बाबाओं के आश्रमों से दूर ही रहे.भगवान यशोदा और कौशल्या की गोद में है,बाबाओं की झोली में कदापि नहीं. मंदिरों के पैसों को जन संपत्ति घोषित किया जाये,उसका उपयोग अशिक्षित समाज को शिक्षित करने में लगाया जाये. आज कुछ महंत, मठाधीश हराम की खाकर बहुत मोटे हो रहे हैं और धर्म को दूषित कर रहे हैं.
“जय हिन्द ,जय भारत”.

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