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“गंगा”

SUBODHA
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तुम हरि का चरणामृत हो,विधि कमंडल का जल हो.
तुम शंकर जटा की शोभा हो,इक्ष्वाकयुवंशप्रिय इष्ट हो.
मनु की संतानो के तप से ,तुम धरा धाम पर आयी हो,
जैसे संध्या बेला होने पर,सवत्सा गौ ने हुंकार लगाई हो.
तुम मानवता की सर्जक हो,साक्षात स्वरुप ब्रह्म का हो,
तुम जीवों का जीवन हो, मैया,जह्नु की कुलदीपिका हो.
तुम भारत की लाज जननि,ऋषि -मुनियों की तारणहार बनी,
तुम विश्व भरण कर सकती हो, नमामि भगीरथ नंदिनी.
कोई क्या बाँधेगा तुमको,भव बंधन को हरने वाली,
कोई क्या साधेगा तुमको,जन -जन को तरने वाली.
यह तो माँ की ममता है,जो १०० खून माफ़ कर देती है,
जो बच्चे की रक्षा के खातिर,प्रलय रूप धर लेती है.
सभ्यता नष्ट हो जाएगी माँ ,तुझको कलुषित करने से,
तू पुनर्नवा हो जाएगी,अपने प्रचण्डतम स्वरूप से.
माँ तेरा कल -कल निनाद,हर लेता जीवों का अवसाद,
तेरा दर्शन पाकर के,मिट जाता जीवन का विषाद.
कालांतर या देहांतर से,जब भी मुझको जन्म मिले,
तेरे आँचल में ही मैया,मेरा शैशवकाल पले.
जीवन यात्रा के अंतिम पल,मैं तेरा दर्शन पाऊँ,
प्रज्जवलित अग्नि में भस्मित हो,मैं तुझमे ही मिल जाऊँ.
“जय गंगा मैया”

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