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इस देश की सभ्यता को मैं प्रणाम करता हूँ.साथ ही इस देश के २ महान ग्रन्थ रामायण और महाभारत को भी नमन.हर एक समाज के अपने नियम हैं.अपनी परंपरा और रीति -रिवाज है.घर -परिवार -समाज इसीलिये होता है कि भावी पीढ़ी का सही दिशा निर्देशन करे.
हमारे बाबा जी ने बचपन से ही हमें अपने गोत्र -उपमन्यु,मूल पूर्वज निवास-भैंसई गांव ,शिवली,शिवराजपुर,कानपुर.विस्वा -१२ ,कान्यकुब्ज ब्राह्मण. आदि की जानकारी दे दी थी.
हमारी शादी तय करने से पूर्व हमसे पूछा -कोई लड़की तुमने भी देखी हो तो बता देना. मैंने कहा नहीं -ऐसी कोई नहीं मिली अभी तक. शादी से पूर्व जब भी मैं घर पर गया,तब कहते जवानी बहुत कठिन होती है ,जिसने जवानी संभाल ली,समझो भगवान को पा लिया.दूसरे की बहू ,बेटी से हमेशा इज़्ज़त से पेश आना.
आज जो हमारी सभ्यता में इस नए शब्द(शीर्षक) का पदार्पण हुआ है ,इसका स्वागत करता हूँ.जो लोग इतने सयंमी है ,एक साथ में रहकर अपनी कामुक इच्छाओं को नियंत्रित करते हुए एक दूसरे को जानने की कोशिश करते हैं ,इसके उपरांत ही वैवाहिक बंधन में बँधते हैं.वो प्रणम्य हैं.
पर मुझे नहीं लगता कलियुगी जीव इतना अनुशाषित है.परमहंस और बालब्रह्मचारी हिमालय की गुफाओं में पाये जाते होंगे या बचपन से ही जो थोड़े मूढ़ किस्म के होते हैं,समाज जिन्हे अर्धविक्षिप्त की संज्ञा दे देता है.जो लोग सीता और द्रौपदी पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं,उन्हें धार्मिक ग्रंथों का पुनरावलोकन एवं गहन अध्ध्यन करना चाहिए.
ऐसी कितनी “लिव इन रिलेशनशिप” में रहने के बाद आप समझ पाएंगे,कि अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. विवाह पूर्व शारीरिक सम्बन्ध,यह एक -दूसरे के साथ विश्वासघात है.आज की पीढ़ी इसीलिये इतनी भ्रमित है,उसे कहीं सच्चा प्यार ही नहीं मिल पा रहा. लिखते हुए संकोच हो रहा है,पर वैराग्य की उम्र में हमारे बुजुर्ग भी नयी छोरियों के साथ इश्क लड़ाना चाहते हैं. हम किसे आदर्श मानें,यह भी बहुत बड़ा प्रश्न है हमारे सामने.
पर यह आज़ाद भारत की आज़ाद सोच है अथवा पश्चिम का अंधानुकरण,यह तो समय ही बताएगा.मेरे विचार से यह सही कदम नहीं है.
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