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उपरोक्त प्रश्न का उत्तर हर इंसान अलग -अलग तरीके से देता है,उत्तर देते वक्त या यही प्रश्न करते वक्त हर इंसान का लहज़ा भी अलग होता है.कुछ लोग ऐसे भी हैं,जिन्हे अपनी क्षमता का भी ज्ञान नहीं,उन्हें इसी का ज्ञान नहीं, क्या करें ,क्या न करें अथवा वह भी कुछ कर सकते हैं,बस खाना ,सोना इसी तक सीमित रहकर अमूल्य जीवन विता देते हैं.कुछ ऐसे होते हैं,इसी प्रश्न के बल -बूते न जाने कितनों पर रौब झाड़ते रहते हैं,और अपनी निरर्थक तानाशाही दिखाते रहते हैं ,लेकिन यदि किसी दिन कोई उजड्ड और अख्खड़ सामने आ गया,तो प्रतिउत्तर दे देता -बता तू क्या कर सकता है? अथवा जो मर्जी चाहे कर ले,देखें मेरा क्या बिगाड़ लेगा? तब उन्हें समझ में आता,कि मैं कहाँ पर गलत था.
यदि आप कभी ऐसे अहंकारी के सामने पड़ जाओ,तो उससे उलझो मत.सामने से हट जाओ.वाद -विवाद से बात बढ़ेगी.
ऐसा ही एक अहंकारी राजा था.जो मात्र अपने को ही सर्वोपरि समझता था. उसके दो बेटे.एक दिन उसने दोनों को अपने पास बुलाकर पहले पुत्र से पूछा,” किसकी किस्मत से खाते हो”?,उसने कहा-महाराज आप का पुत्र हूँ,आप ही पालन हार हो मेरे.
दूसरे से भी उसने यही प्रश्न पूछा,वह बोला,” अपनी किस्मत से”. राजा तो सुनकर एकदम भौचक्का रह गया.सोचा आजतक ऐसा कोई नहीं आया,हमारे सामने;जिसने मुझे निरुत्तर कर दिया हो. उसने अपने दूसरे बेटे को राज्य से बाहर निकल दिया. दूसरे बेटे ने राज्य से बाहर जाकर परिश्रम किया,अपना राज्य तैयार किया.अपनी राजकुमारी खोजी.और सजीले रथ पर सवार होकर अपने पिता जी से मिलने गया.
तब जाकर राजा को समझ में आया,मैं कुछ नहीं कर सकता.सब में ईश्वरीय चेतना है,इसलिए मैं -मैं करना व्यर्थ है.
अरे मेरे भाई, भोजन करते वक्त यदि एक निवाला अटक जाये,तो लेने -के -देने पड़ जाते .पानी मांगने तक की आवाज नहीं निकलती. अगली साँस की भी कोई गॉरंटी नहीं, आएगी या नहीं.इतना अनिश्चित जीवन,फिर भी रावण जैसा अहंकार,अशोभनीय है.
इसलिए यदि कुछ कर सकते हो तो सत्कर्म और सत्य से प्रेम करो,नहीं तो यह देह धारण करना व्यर्थ हो जाएगा.
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