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इंसान चाहे खुद निरक्षर हो,पर कोई सही रास्ता दिखाने वाला मिल जाये तो असंभव को भी संभव कर के दिखा सकता है अथवा कभी -कभी बहुत योग्य इंसान को भी ऐसा महसूस होता है, मैं अपने मन की बात ,विचार किसी दूसरे से भी कहूँ,तब शायद जो इंसान चाहिए उसे “सचिव” कहते हैं. गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में सचिव की तुलना/उपमा सत्य से की. और सत्य ही सबसे बड़ा धरम है. प्रयाग वर्णन में बाबा ने लिखा -” सचिव सत्य श्रद्धा प्रिय नारी!!” और सुन्दरकाण्ड में लिखा –
“सचिव बैद गुरु तीन जो प्रिय बोलहिं भय आस! राज धरम तन तीन कर होइ वेग ही नास!!”
अतः सचिव निर्भीक,निडर हो &vice versa. निर्भीक ,निडर इंसान को ही अपना सचिव बनाओ.जो हमेशा पते की बात कहने में कोई संकोच न करे.और तुम भी उससे अपने मन की बात खुलकर स्नेह के साथ कहो.
मैंने कहीं एक छोटी सी कहानी पढ़ी,जो कि निम्नवत है –
एक वैज्ञानिक,उसका नौकर,एक बिल्ली और उसका बच्चा एक ही कमरे में रहते थे.दिन में तो कमरे का दरवाज़ा खुला रहता इसलिए बिल्ली और उसका बच्चा आराम से बाहर -भीतर करते रहते,पर रात्रि में दरवाज़ा बंद होने पर यदि बिल्ली और उसका बच्चा अंदर रहे ,तो बाहर आना चाहे,बाहर रहे तो अंदर आना चाहे.वैज्ञानिक परेशान होने लगा उनकी बेचैनी देखकर.उसने नौकर से कहा -इस दरवाज़े में दो होल करवाएंगे -एक बड़ा,बिल्ली के लिए और दूसरा छोटा,उसके बच्चे के लिए.
नौकर सुनता रहा,थोड़ी देर बाद आराम से बोला -सर,एक बड़ा होल ही काफी है,उससे बच्चा भी निकल जायेगा. उस दिन से वैज्ञानिक ,कोई भी नया प्रयोग अथवा दूसरे कार्यों से पूर्व अपने नौकर से विचार -विमर्श करने लगा.
बस अब और क्या कहूँ?
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