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“FIRST NAME & LAST NAME”

SUBODHA
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इस देश में जातियों की जड़े बहुत गहरी है.शायद अनादिकाल से यहाँ का इंसान ,परिचय देने और जानने के लिए जातिसूचक शब्द का प्रयोग करता आया है. आम जनमानस की ऐसी सोच है -” आम के पेड़ में,आम लगेंगे और कटहल के पेड़ में कटहल”, जैसे इस सत्य को बदला नहीं जा सकता ,वैसे ही जाति आधारित गुणों को बदला नहीं जा सकता. हमारे प्राचीन धर्मग्रन्थ ,रामायण ,महाभारत यहां तक कि सत्यनारायण की कथा में भी,जाति सूचक शब्दों का उपयोग किया गया.
प्राचीन इतिहास और आधुनिक भारत में भी जाति के आधार पर इंसान की पूजा होती रही.उदाहरण के तौर पर- चाणक्य और अटल. बीरबल और दीनदयाल उपाध्याय. पर ऐसी भी कोई जाति नहीं होगी,जिसमे कोई न कोई महान व्यक्तित्व ने जन्म न लिया हो,भले ही उसने अनपढ़ रहकर ही कर्म ,भक्ति और अध्यात्म की पराकाष्ठा अर्जित की हो.पर की अवश्य. अनेक उदाहरण हमारे मध्य और आप के आसपास भी मिल जायेंगे,जैसे -संत रविदास,एकलव्य,बाबा साहब भीमराव आंबेडकर. उस वक्त तो कोई आरक्षण भी नहीं था,पर इन्होने समाज के ऊंची जाति के लोगों को भी नयी प्रेरणा और दिशा दी एवम अपनी जाति के भी दबे,कुचले,अज्ञानता में जीवन जीने वाले लोगों के लिए एक प्रकाश स्तम्भ बने.
अभी भी हमारे यहाँ ऊंची जाति के लोगों को इज़्ज़त और सम्मान से नवाज़ा जाता है ,उनके last नाम के आगे भी “जी” लगाकर पुकारा जाता है.
western culture  थोड़ी अलग है. यदि किसी कंपनी का डायरेक्टर का नाम -एल्विस फर्नाडीस है और हेल्पर का नाम – विजय ,तो विजय भी डायरेक्टर को एल्विस ही कह सकता है,पीठ पीछे या आँखों के सामने.
मैं इस कल्चर का पक्षधर हूँ,क्यों कि आवश्यक नहीं ,आप के सामने “सर ” और “जी, हाँ जी” कहने वाला इंसान,पीठ पीछे भी आप को योग्य बताएगा,इसलिए अच्छा है -एक नार्मल वार्तालाप हो,हर एक इंसान के बीच में.
“प्रथम नाम लेने से जातिवाद पर भी कुछ नियंत्रण होगा. आदर और सम्मान शब्दों का मोहताज़ कभी नहीं होता, यह अंतर्मन की गहराई से उठने वाले उदगार हैं,जो कि बिना लच्छेदार शब्दों के भी समझे जा सकते हैं”.

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