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ऋतुएँ यज्ञ के समान हैं,ऐसा हमारे वेद -शाश्त्र कहते हैं.सभी ऋतुओं की अलग -अलग विवेचना अभी तो मुझे याद नहीं. गर्मी,यज्ञाग्नि है.ऐसे ही अन्य ऋतुएँ भी.शरद ऋतु, यज्ञ का प्रतिफल.
किसी कवि के शब्द – “तपती हुयी जमीं है,जलधार मांगता हूँ”. ईस्वरीय व्यवस्था कितनी सुन्दर है-एक ही सूर्य,पूरी श्रष्टि का जीवन दाता है. एक ही चन्द्रमा सारे जगत की वनस्पतियों में रस भरता है,सारी श्रष्टि को शीतल करता है.एक बार वारिश हुयी तो २-४ किलोमीटर के एरिया को आप्लावित कर ही देगी. वातावरण में उपस्थित सारे धूल कणों को ख़त्म कर देती है.शहर में होते हुए भी मुझे अपने गांव की पहली वारिश याद आती है.वो मिटटी की सोंधी खुशबू ,शायद स्वर्ग में इन्द्र को भी नसीब नहीं होती होगी. तभी तो देवता भी मनुष्य बनकर इस धरती पर जन्म की आकांक्षा करते हैं.
रामचरितमानस में तो बाबा ने वर्षा को रघुपति भगति की उपमा दी and vice versa.
रघुपति भगति वर्षा ऋतु के समान है.
दोहा -वर्षा ऋतु रघुपति भगति ,तुलसी सालि सुदास.
राम नाम वर वरन जुग,सावन भादों मास..
भावार्थ -रघुपति भगति वर्षा ऋतु है,अच्छा दास, धान की फसल है.राम नाम के दोनों श्रेष्ठ शब्द (रा,म ),सावन और भादों के महीने के समान हैं. श्रावण और भाद्रपद के महीने में सबसे अधिक वारिश होती है,उसके उपरांत ही धान पककर तैयार होती.
अतः जैसे श्रष्टि के लिए वर्षा ऋतु आवश्यक है ,वैसे ही जीवन के लिए रघुपति भगति.
यदि आप तप्त हैं ,संसार के त्रिविध ताप से,तो रघुपति भगति का आश्रय लीजिये. पवन पुत्र की असीम कृपा से त्रिविध तापों का हरण होगा और त्रिविध बयार -शीतल ,मंद ,सुगंध -का संचरण होगा.
प्रत्येक जीव के जीवन वृक्ष पर , ईश्वरीय पावस की प्रथम करुणा बिंदु गिरे,इसी मंगल कामना के साथ…………………………………..”जय श्री राम”.
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