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एक प्रश्न मेरे मष्तिष्क में हमेशा उठता रहता-” इस संसार का सत्य क्या है?,मृत्यु या जीवन. अथवा कुछ और -आत्मा ,परमात्मा आदि”. बाबा जी बचपन में एक चाणक्य नीति का श्लोक सुनाया करते थे –
परिवर्तनशील संसारे मृता कोवा न जायते,
स जाते ,येन जातेन जाति वंशः समुन्नति.
इसका शब्दार्थ यह है -इस सतत परिवर्तित होने वाले संसार में कौन नहीं मरता,पर उसी का जन्म लेना सही है,जिससे उसके घर ,परिवार ,वंश ,गांव-समाज का भला हो,कुछ विकास हो.
एक अपने विगत जीवन का संस्मरण याद आ रहा है……………….
बहुधा एक जनपद में एक ही राजकीय माध्यमिक विद्यालय होता है.पर हमारे जनपद में ,(तब फर्रुखाबाद ,अब कन्नौज) में दो थे .श्री प्रभाकांत शुक्ल ,उत्तर प्रदेश सरकार में एजुकेशन डिपार्टमेंट में उच्च पद पर थे,उन्होंने अपने गांव -उमर्दा में भी एक राजकीय विद्यालय अपनी जमीन वगैरह देकर खुलवा दिया. मैंने ९-१० की शिक्षा वहीं अर्जित की,११-१२ वी में केवल आर्ट विषय से मान्यता थी स्कूल में . विज्ञान न होने के कारण दूसरे कॉलेज में एडमिशन लेना पड़ा. मैं अपने गांव से पैदल ही उमर्दा स्कूल चला जाता था,लगभग तीन किलोमीटर की दूरी थी. साइकिल से भेजने के लिए बाबा मना करते थे,कहते या तो कोई तुमसे छीन लेगा ,या तुम एक्सीडेंट कर लोगे अपना. ९ वीं कक्षा में पहुंचकर मैंने गणित और विज्ञान की कोचिंग भी पढ़ी,मैं सुबह ६ बजे की क्लास अटेंड करता था ,जल्दी जाना पड़ता था घर से . ५ बजे घर से बाहर, सर्दी के दिनों में सुबह कुहरा वगैरह पड़ने के कारण काफी अँधेरा रहता है,पर जाना तो पड़ेगा ही भाई. मैंने एक दिन बाबा से कहा ,रास्ते में डर लगता मुझे. कभी -कभी सांप ,वो भी काला;नीलगाय आदि सामने से एकदम निकलते .मैं रुक जाता.बाबा बोले -रामचरित मानस की चौपाइयां कहते हुए जाया करो,सांप को देखकर “आस्तीक महाराज की जय” कह दिया करो.आस्तीक महाराज साँपों के गुरु हैं.मुझे विगत क्लासेज के पाठ्यक्रम की कुछ चौपाइयां -केवट प्रेम ,परशुराम -लक्ष्मण संवाद,राम -भरत मिलन, कंठस्थ थी. मैं कभी उच्च ,मध्य और कभी निम्न सुर में चौपाई गाता हुया जाता था.रास्ते में खेतो की रखवाली करते किसान ,मेरे मित्र बन गए ,भले ही वह इतनी सुबह मुझसे मिलते न हो,पर बाद में जब कभी बाबा जी से मिलते ,तो मेरे बारे में बताते.
मेरी आदत थी सड़क पर पहुंचकर जो भी वाहन आता था ,मैं हाथ जरूर देता था ,रुकने के लिए. चाहे साइकिल ही क्यों न हो.मैं सोचता बिठाएगा तो सही ,नहीं पैदल तो जा ही रहा हूँ.पर दुनिया में भले लोगों की भी कमी नहीं हैं. सप्ताह के ६ दिन में से ३-४ दिन कोई मिल ही जाता था.
एक दिन मैंने एक ट्रेक्टर को हाथ दिया,मैं उसमे चढ़ा तो पीछे ट्राली में ५-६ लोग बैठे,काफी बुजुर्ग ,सर्दी का सीजन, सब मुहं बगैरह ढके हुए.मैं समझ गया माज़रा क्या है.पर फिर भी मैंने अपनी शंका समाधान के लिए उनसे पूंछा,बाबा आप लोग कहाँ से आ रहे हो. उनमे से एक ने बोला -यदि बेटा यह बताऊंगा ,तो तुम उतर जाओगे. हमने कहा नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं. उन्होंने बताया -हम एक मिट्टी जलाकर आ रहे, गंगा जी से.
मैंने कहा -यह तो बाबा मृत्युलोक हैं ,सब को मरना है , एक दिन. उनमे से दूसरा बोला -ब्राह्मण घर के हो क्या, बच्चे.मैंने कहा हाँ .तब तक उमर्दा आ गया. और मैं उतर गया.पर उस दिन मैं अपना लंच सही से नहीं खा पाया.मुझे २-४ दिन तक वही ट्रेक्टर याद आता रहा और यही बातें.जो मैंने ऊपर लिखीं.
हमारे बाबा जी कहते- मरने के लिए भी दिमाग चाहिए,शांत होकर चुपचाप संसार से मुंह मोड़ो.
RIP GM(SHREE GOPINATH PANDURANG MUNDE JI ) ,I NEVER HEARD ANY CONTROVERSY ABOUT YOU,EXCEPT BEFORE LAST ELECTION WHEN YOU DECLARED IN PUBLIC ,HOW MUCH MONEY YOU SPEND IN ANY ELECTION OF YOUR PREVIOUS LIFE. HISTORY WILL REMEMBER YOU AS VERY GOOD & IDEAL LEADER.
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