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मुझे इन दोनों बिन्दुओं से भी ज्यादा जरूरी लगती है -“ईमानदारी”.अपने प्रिय रीडर्स से कुछ संस्मरण शेयर करते हैं –
मेरे बाबा जी ने एक बार मुझे बताया-जब तुम्हारे पिता जी ४-५ वर्ष के रहे होंगे और बुआ जी ६-७ वर्ष की,दोनों लोग खेत के पास जा रहे थे .रास्ते में किसी दूसरे के खेत में आलू थे (बाद में उन्होंने खेत भी दिखाया ,जहाँ से आलू निकाले थे हमारे पिता जी ने ),आलू का फल बड़ा होने पर उसके आसपास की मिट्टी हट जाती है,फल बाहर से भी थोड़ा दिखाई देने लगता.इन दोनों लोगो ने मिलकर सोचा -चलो यहाँ से आलू ले चलेंगे आज घर पर. १०-१२ आलू यह लोग लेकर घर आये. मैं घर पर आया तो देखा – मैंने सोचा आलू तो हैं नहीं अपने खेत में ,फिर यह कहाँ से आ गए.तुम्हारी दादी ने बताया यह लोग कहीं से ले आये. हमने उनसे पूछा -कहाँ से लाये,तो कुछ उत्तर ही नहीं दिया,खेत वाले का नाम ही नहीं मालूम. मैं इन दोनों को साथ में, ले गया खेत तक ,जिससे आलू निकाले. और बाद में उस इंसान के घर पर जाकर वापस करवाये. वो बोला ,कोई बात नहीं चच्चा ,बच्चे हैं ,गलती हो गयी,मैंने कहा यदि इस बार नहीं सुधरे तो यही गलती यह जीवन भर करेंगे.
इसलिए बचपन की छोटी भूल सुधारना बहुत जरूरी है.
ऐसा ही एक दूसरा संस्मरण -मेरा छोटा भाई एक बार मार्केट से दो बनियान लेने गया,गलती से दूकानदार ने तीन बनियान दे दी,और दो के पैसे लिए,घर पर आकर देखा.तो दादी बोली चलो अच्छा है,वो लोग भी तो लूटते हैं.बाबा गुस्से में बोला -पूरी दुकान दे देता तो बहुत अच्छा रहता.
हमेशा सही को सही और गलत को गलत ही कहो.
अब बात करते हैं मंत्री जी की -वैसे तो हमारे नए पंतप्रधान(महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री का पर्यायवाची शब्द ) भी पिछले पंतप्रधान से बहुत कम शैक्षिक योग्यता रखते हैं,लेकिन देश की जनता जनार्दन ने उन पर विश्वास कर के बहुमत दिया.इसलिए माननीय कांग्रेसियों इस बार आप का विपक्ष भी मजबूत नहीं,अब तो थोड़ा जवान पर लगाम लगाओ और जितना पैसा अपने ख़ज़ाने में इकठ्ठा किया ,उसको देश की गरीब जनता को पढ़ाने-लिखाने में खर्च कर दो.नहीं तो अगली बार ४४ के जगह ०० ही आएंगे.
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