- 240 Posts
- 617 Comments
आत्मनिर्भरता के लिए मुझे प्रदेश के कई जनपद और देश के नगर एवं महानगरों के कई चक्कर लगाने पड़े.बलिया ,लखनऊ ,कानपुर, भोपाल, चेन्नई,बैंगलोर ,दिल्ली,मुंबई इत्यादि.
चक्कर काटते -काटते मुझे यह सिद्धांत पूर्ण सत्य आभासित होने लगा -“जीवन चरैवेति -चरैवेति के लिए ही है,न किसी से आगे निकलना ,न किसी से पीछे होना है,सबका अपना-अपना जीवन है,सत्य से साक्षात्कार करना ही जीवन का लक्ष्य है”. तुलसी के शब्दों में कहूँ -!!देह धरैं कर यह फल भाई ;भजिअ राम सब काम बिहाई!!
अब शीर्षक के आधार पर बात करते हैं –
इस देश में बहुत विविधता है,उत्तर में वैष्णोदेवी ,दक्षिण में कन्याकुमारी.यदि कन्या कुमारी है ,तो वह शक्तिशाली भी है.ब्रह्मचर्य केवल पुरुषों की ही पर्सनल प्रॉपर्टी नहीं है,अनेक नारियों ने भी समय -समय पर इसके विशिष्ट उदाहरण स्थापित किये.
चेन्नई की बस में लेडीज के लिए सुनिश्चित सीट पर कोई लेडी ही बैठेगी,यदि लेडी नहीं है ,तो सीट खाली रहेगी.
मुंबई का अलग सीन है ,लेडीस सीट खाली है,तो कोई पुरुष भी बैठ सकता है.
दिल्ली का सीन तो सबसे अलग,मेरा भाई एक बार अपने आँखों देखी बात बताया.दिल्ली की बस में एक लेडी सीट पर एक पुरुष बैठा,एक लेडी बस पर सवार हुयी ,तो पुरुष से उठने को कहा.पुरुष ने कहा क्यों,महिला बोली -ऊपर लिखा ,लेडीज सीट. पुरुष ने अपनी वेवकूफी का परिचय देते हुए कहा -जहां लिखा ,वही बैठ जाओ. “क्यों की दिल्ली में द्रोपदी का इतिहास है”.
आप को एक और सत्य घटना सुनाते हैं.एक बार मेरे गांव में एक मांगने वाला गेरुआ वस्त्रों में आया. हर इंसान की प्रक्रति अलग होती है .कोई भिक्षुक को चुपचाप श्रद्धानुसार कुछ दे देता, कोई बहस करता तब देता,कोई देता भी नहीं बेइज्जती कर के भगा देता.
मुंबई की कल्चर अलग है -देना होगा ,तो दे देगा;नहीं तो हाथ जोड़ लेगा;मुझे यह हाथ जोड़ने वाला कांसेप्ट अच्छा लगा.
तो भिक्षुक का एक कान कटा हुआ था,अब चार -पांच गांव वाले इकट्ठे हो गए,प्रश्न कर दिया-पहले यह बताओ तुम्हारा एक कान कैसे कट गया. अब उसने कहा महाराज इसके पीछे बहुत लम्बी कहानी है,बता रहा हूँ ,सुनो -अपनी जवानी के दिनों में मैं एक डकैत के गिरोह में शामिल था. एक बार हम एक शादी वाले घर में डकैती डालने गए,हम कुल पांच लोग थे.घर में घुसकर हमने कमरे की कुण्डी खटखटाई.उस कमरे में अंदर नव -दम्पति थे.लड़का एकदम डर गया,लड़की बहुत साहसी थी.उसने लड़के से कहा डर क्यों रहे,यहाँ कमरे में कुछ रखा है.लड़के ने कहा हाँ,फरसा(परशु ) रखा है ऊपर छत की धन्नियों में. लड़के ने फरसा निकाला,लड़की ने अपने हाथ में फरसा लिया और लड़के से कहा ,तुम कुण्डी खोलकर दरवाजे के पीछे हो जाना और दरवाज़ा थोड़ा ही खोलना. दरवाज़ा खुला ,मैं ( अब भिक्षुक,तब डकैत ) सबसे आगे अपनी टोली में ,मैंने सर आगे घुसाया.सिर के घुसते ही ,एक ओर से फरसे से वार हुआ कान कटकर वही गिर गया.पीछे के साथियों ने झट से मुझे खींचा ,और घर से बाहर लाकर बोले ,इसका सिर काटकर लिए चलते हैं,नहीं तो सब पकडे जायेंगे.मैंने उनके पैर पकडे और अपनी जीवन की भीख मांगी और उसी पल से मैं साधु बन गया.
आज देश को ऐसी नारियों की बहुत आवश्यकता है,जब दो -चार रेप अटेम्प्ट करने वाले काट दिए जायेंगे,तो ऐसी घटनाओ में कमी होने लगेगी.
Read Comments