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क्या पूर्ण बहुमत के आने से खत्म होगी क्षेत्रीय दलों की प्रासंगिकता?-जागरण जंक्शन फोरम

SUBODHA
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विगत लोकसभा चुनाव और परिणाम ने अनेक प्रश्न खड़े कर दिए. बहुत तो किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए.कइयों के तो तख्तोताज उलट गए,कुछ सांसद , ५४३ लोगो के बीच में भी अपना कोई साथी नहीं खोज पा रहे. दिग्गज और दिग्विजयी समझे जाने तथाकथित नेता जिन्होंने अब तक बहुत मलाई छानी होगी,धूल चाटने को मजबूर हो गए. मैंने इसी मंच के किसी साथी के ब्लॉग में एक दिन पढ़ा -२०१४ और १९४७ का कैलेन्डर एक जैसा है,दिन और दिनांक के हिसाब से.
मुझे लगता है -जब प्रकृति और नियति परिवर्तन के लिए आकुल -व्याकुल होती है,तब ऐसा ही मंजर सामने आता है. इस देश के फूटपाथ पर बैठने और रात गुजारने वाला व्यक्ति भी यह जानता है – सही क्या है और गलत क्या. रामचरित मानस में गोस्वामी जी ने कुछ चौपाईं लिखी ,उनकी दो की अर्धाली निम्नवत है –
“हित अनहित पशु -पच्छिउ जाना”, “भल अनभल जानत सब कोई”.
जो जन-निर्वाचित व्यक्ति चुनाव पूर्व यह कहा करते थे -जवानी में गलती हो ही जाती है,तो क्या फांसी होगी ,वही यह कहने को मजबूर हो गए-मंत्री काम ही नहीं करेगा ,तो वोट कैसे मिलेंगे.
जिन्हे खुद को हरिजन शब्द सुनने में भी आपत्ति है,वही दूसरों की जाति के बारे में रीसर्च कर रहे थे. ज्योतिषियों के शाश्त्र भी झूठे हो गए.मैंने दैनिक जागरण पर ही जिनके बारे में अच्छी भविष्यवाणियां पढ़ी ,वो लोग कही के भी नहीं रहे .परिणाम सामने है.लोगों ने बता दिया -हमें हाथी पार्क नहीं, रोजगार चाहिए.
यदि मैं अपने प्रदेश की बात करूँ .जिसके बारे में मुझे थोड़ी ज्यादा जानकारी है, अन्य प्रदेशों की अपेक्षा. जिस जाति का व्यक्ति मुख्यमंत्री बनता,उस जाति का हर इंसान मुख्यमंत्री से ज्यादा खुद को पावरफुल समझता.परिणामतः-रेप,पकड़,चोरी,डकैती,
राहजनी,मर्डर सब होने लगता. बेचारा दीन- हीन गरीब पिसता रहता इन सब के बीच में.जीता रहता मूक -वधिर बनकर,भाग्य और भगवान के भरोसे दिन काटता रहता. तब न उसे कहीं कानून दिखाई देता और न कही नेता.
यह २०१४ की जनता है ,हमारा काम केवल न्यूज़ सुनना -पढ़ना ही नहीं ,हम भागीदारी चाहते हैं,सरकार के हर काम में और हर एक कानून बनाने से पहले हम अपनी राय या विचार देना चाहते हैं.हम जानना चाहते हैं -पैसा कहाँ से आया ,कहाँ गया.अब ब्राह्मण सभा ,दलित महासभा के आयोजन से कुछ नहीं होने वाला. केवल लैपटॉप बाटने से विकास नहीं हो जाता,जिन्हे लैपटॉप की स्पेलिंग भी नहीं आती वो चलाएंगे कैसे, वो २०००० -३०००० रुपये के लैपटॉप को ४-५००० हजार में बेंच देते हैं,क्यूंकि उन्हें अगली क्लास में एडमिशन के लिए ५००० रुपये ही चाहिए,न की लैपटॉप.
राजनीती बहुत विशद विषय है,यह विज्ञान है. आओ सब लोग मिलकर अपना भाग्य बदले,न की ५४३ लोगो के ऊपर पूरे देश और अपने आप को छोड़ दें.
जैसे रामदेव योग करने हरिद्वार चले गए ,वैसे ही केजरीवाल को अन्ना के साथ आकर जन जागरण अभियान चलाना चाहिए.अभी बहुत परिवर्तन बाकी है. सांसद निधि,ग्राम प्रधान के कोटे में पैसे देना. ये सब ख़त्म हो.अकस्मात् बहुत पैसे किसी को भी मिलेगें ,तो खायेगा ही.विकास के नाम पर खुद के नाम का पत्थर लगवा देने से आम आदमी के पेट की आग शांत नहीं होती.
मेरे विचारानुसार देश में एक ही पार्टी रहेगी -जो “सर्वजनहिताय और सर्वजनसुखाय” कार्य करेगी.

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