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माता-पिता का निर्धारण नियति के हांथों में है,
उसी नियति के नियम के आधार पर ,
एक दैदीप्यमान प्रकाश पुंज मानव शशीर धारण कर,
२१ अगस्त १९४४ को,(मेरे विचारानुसार यह भारत के आज़ादी की ब्रह्ममुहूर्त थी,)
इंदिरा गांधी की गोद में शोभायमान हुआ.
आप के शैशवकाल में यह देश आज़ाद हो गया,
जब देश की तरुणाई को तरुण प्रधानमंत्री की जरूरत थी,
जब देश नायक विहीन हो गया था,
जब देश में त्राहि माम् और पाहि माम् के स्वर गूँज रहे थे,
उस वक्त एक विमानचालक ने देश चलाने की जिम्मेदारी ली.
और विगत और वर्तमान समय का सबसे युवा प्रधानमंत्री देश को मिला.
विमानचालक के अनुभवी हांथों और त्वरित निर्णय लेने वाले मष्तिष्क ने,
देश में नयी क्रांति लाई.
आज हम लेखनी छोड़,कंप्यूटर पर बैठकर जो आप को श्रद्धा सुमन समर्पित कर रहे हैं ,
यह आप ही की सोच है.
देश की सीमाओं पर कार्यरत सिपाही को ,अपने घर -परिवार वालों से ,
टेलीफोन से बात करने का सपना आप ने दिखाया.
अपने झगड़ों को घर में ही निपटा लेना,अधिक से अधिक पंचायत तक ही सीमित रखना ,
आप ने अपने प्यारे देशवासियों को सिखलाया.
आप ने माना रुपये का दसवां हिस्सा ही आम आदमी तक पहुँचता है,
यदि आप ने ही डायरेक्ट ट्रांसफर स्कीम लागू कर दी होती ,
तो देश में इतनी लूट -खशोट नहीं होती.
अनेक तो अपना घर नहीं सँभाल पाते,आप ने तो संकट की घड़ी में देश सभांला,
लेकिन बोफोर्स का काला टीका इतिहास ने आप के ऊपर भी लगा दिया.
पिछले दशक में तो जैसे हम सब कोयले की खदान में ही थे,
प्रकृति मानो पूरी तरह से आकुल -व्याकुल हो रही थी,
देश में सर्वत्र कीचड ही कीचड था.
तब विश्व के महान लोकतंत्र के युवाओं ने,
अपने मजबूत हांथों से बहुत कमल खिलाये.
मैं उनमे से एक कमल श्रद्धांजलि के रूप में आप को समर्पित करता हूँ ,
क्योंकि मैं भी इस देश का एक युवा मतदाता हूँ.
आप को भी यह जानकर खुशी ही होगी -“अच्छे दिन आने वाले हैं”.
भारत विश्व के मानचित्र पर अग्रणी देश बनेगा,इसी शुभकामना के साथ……..
जयहिन्द.
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