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“कोउ नृप होइ हमैं तौ हानी”……..क्रमशः

SUBODHA
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मैं सोच रहा हूँ ,लेख लिखने से पहले मैं अपने प्रिय रीडर्स से क्षमा याचना करता चलूँ. अतः
नम्र निवेदन:-मेरे द्वारा लिखे गए शब्द मेरे और मेरे बुजुर्गों के व्यक्तिगत अनुभव और कुछ सुनी हुयी सच्ची बातें हैं.यदि यह आप के जीवन से मैच हो रही हैं,तो कृपा कर के मेरे ऊपर दोषारोपण मत करें.
समय बहुत ख़राब है भाई,लेखकों को जेल भी करवा देता है – अँधा कानून व निष्ठुर-घमंडी कानून विशेषज्ञ.
चलो अब कुछ कानून के और उदाहरण देखते हैं –
३). कुछ दिनों पहले एक गंदे शहर में एक नया कानून बना -पब्लिक प्लेस,बस स्टॉप पर किसी ने थूंक दिया,तो २०० रुपये फाइन.सरकार को लगा ,ऐसे सारी गंदगी खत्म हो जाएगी. सरकारी नुमाइंदे वहां खड़े रहते छुपकर के. अब जो लोग गुटखा वगैरह खाते वो तो आदतवश थूंकते, जो नहीं खाते उन्हें मजबूरी में थूंकना पड़ता.आसपास इतनी गंदगी जो है. सरकारी नुमाइंदे तुरंत आकर पकड़ लेते,चलो ऑफिस -फाइन भरो,नहीं तो जेल. कुछ तहस में फाइन भर के निकल जाते.कुछ बेचारे सीधे -सादे, अनजाने में फँस जाते,रास्ता चलने बाला हर व्यक्ति चारो तरफ लगी हुयी नोटिस पढ़कर तो चलता नहीं और आजकल नोटिस छोटे बोर्ड में लगाई जाती,विज्ञापन के पोस्टर और नेताओं के नाम बड़े पोस्टर में सजते.
ऐसे कुछ दिन तक यह क्रम चलता रहा,एक दिन एक हट्टा -कट्टा लोकलाइड फँस गया उनके जाल में. सरकारी नुमाइंदा तहस में बोला -चलो ऑफिस फाइन भरो,उसने कहा क्यों भाई,ऐसी क्या गलती हो गयी.सरकारी साहब ने बोला थूंका क्यों. उस इंसान ने, आव देखा न ताव और एक जोरदार तमाचा रशीद किया सरकारी साहब के और बोला अब बताओ -कहाँ चलना है.उस दिन से वह कानून के रक्षक वहां से चले गए. थूंकने के आदी लोग अभी भी थूंकते हैं ,पर अब जुर्माना नहीं लगता. ऐसा है इस देश का कानून.
पहले हम अपने आसपास इतनी सफाई रखें कि थूंकने की नौबत ही न आये,फिर भी यदि कोई गलती करे तो उसको आराम से सही रास्ते पर लाने का प्रयत्न करें.
४).एक किसान का खेत, बड़े बम्बे(छोटी नहर) के पास जब नहर में तेज पानी आता तो पास के खेतों में भर जाता,कभी -कभी फसल भी नष्ट हो जाती. एक लेखपाल (सिंचाई भरने का काम करने वाला) उस किसान के दरवाजे सरकारी रशीद (खेत सींचने का बिल) लेकर गया.किसान ने विनम्रतापूर्वक कहा-साहब मैंने खेत में पानी नहीं लगाया,तेज धार की वजह से नाली कट गयी,आसपास सभी के खेत भर गए,मेरा भी भर गया. लेखपाल(या अमीन, अलग जगह अलग नाम हो सकता) के ऊपर सरकार की छत्रछाया, सरकारी नौकरी का रुतवा ही कुछ अलग होता है,बोला-मुझे कानून ने अधिकार दिया,खेत में पानी आया ,तो सिचांई भरने का.
किसान ने कहा ठीक है साहब -अंदर कमरे में आओ ,पैसे देते हैं. साहब अंदर ,कमरा बंद.किसान ने राजनीती के चार सिंद्धान्तों में से -दंड का प्रयोग कर दिया उन साहब के ऊपर. और जाते -जाते कहा -“अधिकार के नशे में कहीं भिष्टा मत खाने लगना”.
अतः कानून और अधिकार के साथ -साथ मौलिक नीति और कर्तव्य कभी मत भूलो.
शेष…………………………………………..फिर कभी.

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