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गॉव के कुछ लड़के तो उनके पास आने से डरते ,पता नहीं ये क्या पूछने लगेंगे…………क्रमशः .
अब तक के ब्लॉग्स के आधार पर हमारे प्रिय रीडर्स यह तो समझ ही गए होंगे ,बाबा-नाती एक दूसरे के दिल के बहुत करीब हैं .उन्होंने हमेशा हमारे लिए ,दूध ,घी की अच्छी व्यवस्था रखी. यदि कुछ कमी होती तो नाना जी गाय भेज देते थे.एक गाय तो ऐसी थी जिसे मैं आम्मा कहकर पुकारता तो चारागाह से हमारी तरफ आ जाती थी,दूसरे लोगो की अपेक्षा मुझे जानवर चराने में आराम रहती ,मैं साथियों से कहता हमारी गाय यहीं से पुकारने से आ जाएगी ,मैं जानवर घेरने नहीं जाऊंगा .
पहले ६ क्लास में जाने पर इंग्लिश की शुरूआत होती थी,लेकिन मुझे पांच तक पहुँचते -पहुँचते- व्हाट इज योर नेम ?,where do you live ?what is your father’s name ? etc – बाबा जी ने लिखना,पढ़ना और बोलना भी सिखा दिया था.लगभग हर विषय का उन्हें अच्छा ज्ञान था,यदि कुछ नहीं पता भी रहता,तो किसी जानकार व्यक्ति से पूछकर मुझे बता देते थे.जैसे मुझे इंग्लिश में टेबल (पहाड़े ) नहीं आते थे ,शहर का एक लड़का एक बार गॉव आया,उसके पास मुझे ले जा के पुछवा दिया.मैं भी समझ गया.पहाड़े वही हैं,केवल one jaa ,two jaa लगाना पड़ता है.अतः उन्हें भी विश्वास था वह मुझे अपने पास रखकर सही से पढ़ा लेंगे. बहुत कोशिश की उन्होंने मुझे अपने पास रखने की.हम दोनों लोग खेत के पास जाते तब रास्ते में मुझे समझाते- कहते, पहले एक गॉव में साधु आता था ,वह केवल यही बोलता था -चेत जाओ ,चेत जाओ,चेत जाओ. तुम्हारा बाप गुस्से में उल्टा तमाचा मारता.बहुत मारेगा तुम्हे,यदि कुछ गलती हुयी. इसलिए चेत जाओ लल्ला.
पर बाल मन और घूमने की चाह ने एक न सुनी.परिणामस्वरुप-पुत्र के साथ पौत्र भी बूढ़ी आँखों के सामने घर छोड़कर निकल दिया.सब “तीन के तेरह” हो गए.घर पर बाबा-दादी ,माँ जी और छोटा भाई.
मेरी जीवन यात्रा प्रारम्भ हुयी.हरदोई में मेरी बुआ जी का घर,वहां जाकर हम लोग एक दिन रुके. शाम को हरदोई से शाहगंज (बरेली फ़ास्ट पैसेंजर से), और शाहगंज से रसड़ा (शाहगंज – मुग़ल सराय ट्रैन से).रसड़ा से प्रधानपुर वाया बस…………………………………
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