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आजकल हमारे देश में एक नयी समस्या बढ़ती जा रही है -आत्महत्या.यदि इंसान किसी दूसरे का मर्डर कर दे ,तो देश का न्यायालय उसे दंड देगा .यदि आत्महत्या करने में विफल भी हो जाये ,तो भी न्यायालय उसे दंड देगा.१२ की हिन्दी पुस्तक में मैंने पढ़ा था -“आत्म हत्या सबसे बड़ा पाप है”.परन्तु आत्महत्या के बाद यह नियति, आत्मा को दंड देती है ,ऐसा मेरा अपना विचार है .अकाल मृत्यु होने पर ,पुनर्जन्म होने तक आत्मा प्रेतयोनि में रहती है ,ऐसा मैं मानता हूँ .आप माने या न माने ये आप पर निर्भर है.
आत्महत्या करने के पीछे अनेक कारण हो सकते हैं -कुछ बहुत गंभीर ,और कुछ बहुत मामूली. जैसे-देश के किसान के द्वारा आत्महत्या,दहेज़ के कारण प्रताड़ित होने पर महिला द्वारा आत्महत्या,देश के बॉर्डर की रक्षा करते हुए , देश के नेताओं की ओछी राजनीती से परेशान होने पर आत्महत्या -गंभीर प्रश्न ,माँ-बाप ने बच्चे को कुछ करने से मना कर दिया और बच्चे ने आत्महत्या कर ली,सिर पर कौयाँ बैठने पर एक इंजीनियर द्वारा आत्महत्या ( इससे बड़ा अन्धविश्वास और क्या हो सकता ) -मामूली सी बात पर आदि-आदि.
कुछ लोग तो मुझसे परिचित ही थे ,जिन्होंने यह कदम उठाया.दो का कारण -बहुत ज्यादा उधार हो गया ( अच्छी -खासी सैलरी होने के वावजूद भी ),एक का कारण -घर पे किसी से झगड़ा हो गया.
मेरा मंतव्य और सुझाव है -१.हर एक बात को सीरियसली मत लो .२.”ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत”( कर्ज ले के मजे मत लूटो ) का आचरण मत करो. ३. यदि आप माता-पिता हो ,तो बच्चों से हर बात तहस में मत कहो ,शांती से बात घुमा-फिरा के ,इधर -उधर के दो -चार उदाहरण दे के समझाओ.पहले घर में बाबा -दादी भी रहते थे .बच्चे माँ- बाप से रूठकर बाबा -दादी के पास चले जाते थे.बच्चे प्यार के भूखे,बाबा-दादी बहला -फुसला देते थे.४. ईश्वर के प्रति आत्म समर्पित रहो -वही सबका तारनहार है,वो जीव की हर आवश्यक आवश्यकता पूरी करने में सक्षम है. ५. भोग के साथ-साथ अध्यात्म में भी रूचि रखो .६.अपने कुलरीति के अनुसार घर पर कुछ पूजा -पाठ ,दान -हवन अवश्य करो( आवश्यक नहीं कि कोई आचार्य ,गुरु ,पुजारी मिले ) ,कष्ट दूर होंगे ;नोट -मैंने एक बार सोचा- मुंबई में अपने रूम पर दुर्गा हवन करवा दूंगा ,मैं एक मंदिर के पुजारी से जा कर मिला-वह बोला ५५००/= .पांच आचार्य पाठ करेंगे ,बाद में हवन करेंगे,यहीं मंदिर में ,आप को आने की भी आवश्यकता नहीं.मैंने कहा पाठ तो मैं करता ही हूँ ,आप हवन करवा दो ,५१/=दक्षिणा दे दूंगा ,पुजारी जी बोले तो हवन भी कर लो ,किसी पुस्तक में ऐसा तो लिखा नहीं आप हवन नहीं कर सकते.मैंने कहा -साधुवाद महाराज,५५०० /=बचाने के लिए .
हमारे बाबा जी बचपन में मुझसे कहा करते थे-इंसान गरीब हो जाये ,कोई बात नहीं .पर विवेकहीन न हो.विवेकहीनता सर्वनाश करती है ,विवेकवान “व्यक्ति और परिवार” धन पुनः अर्जित कर लेगा.
यह जीवन आत्मउत्थान और आत्मबोध के लिए मिला ,न कि आत्महत्या के लिए……………………
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