Menu
blogid : 18093 postid : 730438

“आत्मा ,प्रेतात्मा,महात्मा और परमात्मा”

SUBODHA
SUBODHA
  • 240 Posts
  • 617 Comments

इस देश में भगवान के बारे में बातें करना ,बहुत आम बात है,करीब-करीब हर इंसान भगवान के बारे में बहुत बड़ा भाषण देने की काबिलियत रखता है.आत्मा ,परमात्मा इस देश के लोगों के लिए “बाएं हाथ के खेल” जैसा है. अपने गलत कर्मो का भी दोषारोपण वो भगवान के माथे मढ सकता है .कुछ तथाकथित धर्मगुरु तो,भगवान के नाम का सहारा लेकर भगवान के भी बाप बनकर बैठ गए.पर उन्हें यह पता होना चाहिए भगवान सबका बाप है ,एक न एक दिन वो अपने हर बच्चे की खबर लेता है .
कुछ निराकार ,तो कुछ साकार ;कुछ पत्थर ,तो कुछ चित्र ;कुछ धर्म ग्रन्थ ,तो कुछ प्रवचन के भरोसे रहकर अपने-अपने, नए-नए तरीके इज़ाद कर रहे है और भोली -भाली जनता के भरोसे उनका धंधा भी खूब फल-फूल रहा है .हमारी प्राइमरी एजुकेशन के चौथी क्लास में ,हिंदी की बुक में एक चैप्टर था- “ढोंगी बिल्ला”.ऐसे लोगों को देखकर ,उनके बारे में पढ़कर या सुनकर मुझे वो स्टोरी बहुत याद आती है .
मेरा अपना मानना है -” सूर्य को खोजने के लिए दीपक ,टोर्च या जुगनू की कोई आवश्कयता नहीं, अपितु सूर्य ही हमें सांसारिक बस्तुओं को खोजने में मदद करता है”.
मैंने अष्ट्रावक्र गीता में पढ़ा-अष्टावक्र जी ने महाराज जनक से प्रश्न किया-इंसान बस्तुओं को कैसे देखता है ?,जनक जी का उत्तर – आँख के द्वारा सूर्य के प्रकाश से.अस्टावक्र का पुनः प्रश्न -सूर्यास्त के बाद ,जनक का उत्तर-चन्द्रमा के प्रकाश से ,पुनः प्रश्न -जब सूर्य चन्द्र दोनों ही न हो तो ,उत्तर-किसी कृत्रिम प्रकाश से जैसे-लालटेन,मोमबत्ती ,टोर्च आदि .पुनः प्रश्न -यदि आँखों की रोशनी ही चली जाये ,तो इंसान कैसे देखता है ,उत्तर-आत्मा के प्रकाश से,अनुभव के द्वारा.
संसार के हर जीव का यथार्थ भी यही है ,हर जीव में आत्मा है.हर आत्मा के साथ उसका ढेर सारा अनुभव जुड़ा है.प्रत्येक जीव खाना-पीना ,अपनी सुरक्षा करना ,अपनी प्रजातियां बढ़ाना जानता है,चाहे चींटी हो या हाथी,व्हेल हो या मोर.
किसी को कमजोर समझना यह बहुत बड़ी भूल है .प्रकृति में हर -एक जीव,प्रत्येक तत्त्व ,यहाँ तक की प्रत्येक पौधा बहुत शक्तिशाली है . शायद इसीलिये गीता में कहा गया -“ईश्वरः सर्व भूतानाम”.
इस संसार में आत्माओं के भी विविध प्रकार हैं -जैसे अच्छी आत्मा ,बुरी (दुष्ट )आत्मा,महान आत्मा आदि . एक “परमात्मा”भी है ,वो इस संसार की नहीं ,अपितु पारलौकिक संसार की आत्मा है और वो ,जहाँ तक मेरी समझ है “एक”ही है .
कुछ लोग कहते मैं -भूत -प्रेत आदि में विश्वास नहीं करता ,मेरा बस उनसे यही निवेदन है वो पहले अपनी आत्मा को ही जानने की कोशिश करें………………………………………

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh