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हमारे समाज में , हमारे आसपास और हमसे प्रतिदिन मिलने वाले अनेक प्रकार के लोग होते हैं. जैसे कि -कुछ आब्जर्वर (हर एक व्यक्ति या घटना को ध्यान से देखते हैं),कुछ एनालाइजर ( देख कर क्या सही – क्या गलत सोचते हैं ),कुछ तार्किक (अपनी सोच, सामने बाले व्यक्ति को बताते हैं ),कुछ वितार्किक ( सामने वाला जो कहे ,हमेशा उसकी बात काटकर ,अपना कुछ अलग बताएँगे ),कुछ कुतार्किक ( अपनी ही बात को सच साबित करने के लिए जो मन में आएगा ,बोलते जायेंगे ;कब तक बोलेंगे यह भी सुनिश्चित नहीं ).अपनी- अपनी चेतना ,हम सब आज़ाद ;जिसे जो कहना है ,वो कहेगा.कुछ तो ऐसे हैं ,यदि किसी ने रोक दिया ,तो और अधिक कहेंगे .
इस देश में छोटी -छोटी बातों से बड़ा झगड़ा हो जाता है .परिवार में झगडे ,देवरानी-जिठानी के झगडे ,रोड rage में मर्डर ,किसी ने कुछ बैक रिप्लाई दे दिया तो मर्डर .सहनशीलता घट रही है ,बदला लेने की प्रवृत्ति बढ़ रही है . मेरे बाबा जी बचपन में समझाते थे- झगड़ा शुरू करने के १०० तरीके ,और खत्म करने के भी १००. एक बोल रहा ,तो एक शांत हो जाये ;झगड़ा बंद हो जायेगा. दोनों बोलते ही रहेंगे ,तो झगड़ा बढ़ेगा ही .
समाज में ऐसे लोग भी हैं ,जो यदि कोई अच्छा काम प्रारम्भ करे ,तो मखौल उड़ाना चालू कर देंगे ,अच्छे काम में बाधाएं डालने लगेंगे .गॉवों में यह सब काम अधिक होता है ,पर एकाग्र व्यक्ति अपने काम में मन लगाकर यदि आगे बढ़ता जाये,तो सफल हो ही जाता है .
मेरे बाबा जी बताया करते थे-मैंने तुम्हारे पिता जी का कन्नौज में B .A . में एडमिशन करवाया .तीन सब्जेक्ट्स में से एक इंग्लिश भी दिलवायी .गाव के लोग कहते थे -दुबे इंग्लिश पढ़ा रहे हो ,वकील बनाओगे क्या .हमने कहा भैया जो भगवान् चाहेगा ,वही बनेगें. पढ़ाना हमारा फ़र्ज़ है. उन्होंने हमसे कहा -“भले ही माँ -बाप आधी रोटी कम खाकर पैसे बचाएं,लेकिन अपने बच्चों को पढ़ाएं अवश्य. बच्चा बड़े होकर माँ-बाप को पैसे नहीं भी देगा ,तो कोई बात नहीं, कम से कम खुद तो सुखी रहेगा .पढ़ा -लिखा व्यक्ति झगड़ा भी करता है ,तो कानून -कायदे से ,कोर्ट जायेगा ,वकील करेगा ,पढ़े -लिखे इंसान (जज ) से अपना न्याय करवाएगा.अनपढ़ लाठी लेकर झगड़ा करेगा ,सर फोड़ देगा.पढ़ा लिखा व्यक्ति शराब भी पियेगा ,तो क्वालिटी देखकर ( कही ऐसी तो नहीं जिसको पीकर उसकी मृत्यु हो जाये ),शराब पीकर चुपचाप सो जायेगा ,अनपढ़ देशी पियेगा ,पीने के बाद घूम- घूमकर चिल्लायेगा ,गाली देगा ,बाद में किसी नाली के किनारे नशा उतरने तक पड़ा रहेगा”.
मेरी माता जी जब मुझे बचपन में पढ़ना सिखाती थीं,तब हमारे चचेरे चाचा जी कहा करते थे-पढ़े-लिखे कानपुर में रिक्शॉ चलाते हैं ,माँजी कहती थीं- I.A.S . अनपढ़ नहीं बनते हैं .ऐसे अनेक उदाहरण हमारे आसपास मिल जाते हैं -जैसे किसी से राम- राम कहो ,सीधा इंसान होगा तो राम -राम कर लेगा,वितर्की होगा तो कहेगा -राम -राम नहीं ,हम राधे -राधे करते हैं .कुतर्की होगा तो कहेगा -हमें राम से क्या करना .
श्री डॉ.अमर्त्य सेन “नोबल पुरस्कार विजेता” ने तो एक किताब ही लिख दी -argumentative इंडियन .
मैं तो अच्छा सुनने , कम और सटीक बोलने में विश्वास करता हूँ .सुनो सबकी ,करो मन की ……………………………………………………………….
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